पहले पृथ्वी पर "सनातन धर्म" केवल और केवल एक ही धर्म था । जिसका मूल था धर्म, अर्थ , काम ,मोक्ष और वैदिक पूजा पाठ का ज्ञान हर एक जन तक पहुँचाना और उसे उसके भीतर स्थित ईश्वरीय तत्व का ज्ञान कराना । सनातन धर्म ने ईश्वर को हमेशा एक सत्ता के रूप मे माना, और तीन पन्थो मे विभाजित हुआ, जो थे शैव , वैष्णव और शाक्य। जिनका उल्लेख मे कुछ समय पहले कर चुका हूँ।
सनातन धर्म विभाजित था मुख्य रूप से चार वर्णो मे जो थे,
1-ब्राह्मण
2-क्षत्रिय
3-वैश्य
4-शूद्र
और इन चारो से मिलकर ही सनातन धर्म पुर्ण होता था। चारो ही सनातन धर्म के मुल स्तम्भ थे। कोई किसी से ना बढकर था, ना ही कोई किसी से छोटा। सबके अपने अपने कार्य और प्रभुत्व थे।
जो वेदपाठी, जनेऊधारी, ब्रह्म को जानने वाला और सदाचारी और ईश्वर की भक्ति और शक्ती को पूजने और प्रसार करने वाला था वह वर्ण कहलाया ब्राह्मण।
जो देश की , प्रजा की रक्षा करने वाला और भरण-पोषण करने वाला था। वह वर्ण कहलाया क्षत्रिय।
जो व्यापार करता था, जिसका कार्य था अर्थव्यवस्था को बनाये रखना। देश और प्रजा की आपूर्ति लेन-देन के माध्यम से करना । वह वर्ण वैश्य कहलाया।
जो सेवा करता था, किसी भी रूप मे इन सभी वर्णो की और जिसका कार्य था किसी भी प्रकार के संदेश को आदेशानुसार उसकी सही जगह और स्थान तक पहुँचाना। वह वर्ण शूद्र कहलाया।
अगर देखा जाये तो कोई भी धर्म या कार्य ना ही किसी से बड़ा था ना ही छोटा। सबके सब मिलकर सिर्फ एक धर्म का हिस्सा थे , जो था सनातन धर्म। अगर कोई शूद्र ब्राह्मण का आचरण जीता तो वो भी ब्राह्मण के ही समान था, और अगर कोई ब्राह्मण किसी शूद्र का आचरण जीता तो वह भी शूद्र के ही समान था। वर्ण सिर्फ कर्मो के आधार पर ही विभाजित कियें गये थे , ना की जन्म के आधार पर।
फिर धीरे-धीरे कुछ आपसी विद्रोह के कारण यह वर्ण आपस मे लड़ते और बंटते चले गये। कुछ लोगो ने अपने प्रमुखो को अपना गुरु मान नये धर्म की स्थापना भी की । और फिर सनातन धर्म बँट गया बहुत से अलग अलग धर्मों में। सबके अपने अलग विचार , अपनी रीतियाँ, अपने ग्रंथ, अपने तर्क, अपने आचरण, अपनी नीतियाँ तक विभाजित हुएँ। और यहाँ से आरम्भ हुआ धर्म के पतन का।
पर सभी धर्मो ने ईश्वर को हमेशा एक ही माना।
इस तरह एक धर्म के कई धर्मो मे विभाजित होने के बाद, जो लोग सनातन धर्म को मानते थे वह हिन्दू कहलायें, इनके विपरित जो चले वो मुस्लिम। जो सनातन धर्म के साथ साथ अपने तर्को को भी महत्व देते थे वह सिक्ख। और जो इन सभी से अलग अपने बनाये नियमो पर चलते थे वह ईसाई।
सभी अपने अपने धर्म को मानने वाले सभी गुट मिलकर जहां-जहां जाकर बसे वह स्थान उस धर्म का गढ़ या यूँ कहे पृष्ठभूमि हो गया। भारत को छोड़कर। भारत अब भी सनातन धर्म का ही प्रणेता हैं। और एक अजीब बात यह हुई की सारे हिन्दू भारत मे ही रह गये।
फिर हिन्दू धर्म को फिर चार वर्णो मे बांटा गया। पर अब परेशानी यह थी की वर्ण निर्धारण कैसे हो? तो वही सनातन मान्यताओं अनुसार कर्म को ही वर्ण का आधार माना गया। जिसे कुछ लोगो ने सिर्फ अपनी प्रभुता अपनी सत्ता बरकरार रखने हेतु अपने अनुसार तोड़-मरोड़ कर रख दिया। जिससे हिन्दू धर्म और छोटे छोटे भागो मे लगातार बंटता चला गया।
अब हिन्दू कोई नही बचा था, अब थे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य,शूद्र, जाट, विश्वकर्मा, जैन, यादव, आर्य, सुनार और भी बहुत से भाग जिन्हे जातियाँ कहाँ गया। कुछ मूर्ख मौका परस्तों की बदौलत पुरा सनातन धर्म 4 धर्मों और कितनी ही जातियों मे बंट गया। जिसका भुगतान आज तक हर कोई कर रहा हैं।
उसके बाद भारत कई हिस्सो और भागो मे बँटता चला गया। भाषाओ के आधार पर। जाति जनित सभ्यता के आधर पर और कुछ लोगो की जागीर के आधार पर।
फिर जब भारत आजाद हुआ तो सबसे बड़ा सवाल जो उत्त्पन्न किया उसे संविधान ने उत्पन्न किया, अगर उसी समय जाति हटा कर भारत का हर नागरिक भारतीय होगा यह लिख देते तो आज यह समस्या उत्पन्न ही नही होती।
आज कोई भी भारतीय नही हैं। हम बंटे हैं साधारण, पिछड़ा वर्ग ,अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति मे। वर्ण तो 4 थे जो कर्म आधारित थे, पर यहाँ तो कोई कर्म की जरुरत ही नही हैं। आपके जन्म के समय जो ठप्पा लग गया वो हो गई जाति आपकी। कौन कैसा हैं, किसकी क्या स्थिति हैं , क्या परिस्थिती हैं, कोई फर्क नही पड़ता इससे। जो ठप्पा लग गया आपके जन्म प्रमाण पत्र पर बस वह हो गए आप। फिर भले ही आप कुछ भी करते हो, कैसा भी जीवन जीते हो।
अब गलत कौन वह सनातनी वर्ण व्यवस्था जहां सबकुछ कर्मो के आधार पर विभाजित था, या यह वर्तमान की व्यवस्था जो जन्म लेते से ही लागू हो जाती हैं। जिसे सरकारें चाहती तो बदल सकती थी, पर कभी किसी ने इसे बदलना नही चाहा। सिर्फ राजनीती के गंदे खेल को खेलते हुएँ हर बार जातियों को अपने मोहरों की तरह इस्तेमाल किया गया। और आगे भी किया जाता रहेगा। क्युकी हम लोगों के मस्तिष्क मे हम जो धारणा किसी के लिए एक बार बना लेते हैं, उसे कभी मिटा नही पाते। फिर चाहे वो धारणा गलत ही क्युं ना हो।
यही हमारे साथ होता रहा हैं, होता रहेगा। हमने सिर्फ लोगो द्वारा सुनी कहानियों , और बातों पर ही विश्वास किया हैं। कभी किसी चीज के बारे मे तथ्यों को खोजना और समझना नही चाहा। अब इसे हमारी मूर्खता कहूँ या कुछ और हम सभी सिर्फ दिखावा ही करते हैं, इंसानियत का धर्म सबसे महान हैं, वगेरह वगेरह, पर देखा जाये तो हमने कभी धर्म को समझा ही कहाँ हैं, धर्म भी हमे इंसानियत की ही शिक्षा देता हैं। यह जातियाँ तो हम लोगो ने खुद बनाईं हैं। और हम कोंसते रहते हैं, हमारे ग्रंथो को उपनिषदों को, हमारे महान वैदिक सनातन धर्म को। सच मे मूर्ख ही तो हैं हम।
यहां मैं किसी जाती या धर्म विशेष पर कोई टिप्पणी नही कर रहा हूँ। मैं बस उस महान धर्म का सच बताने का प्रयास कर रहा हूँ, जिसे लोगों ने अपने अनुसार कुछ का कुछ प्रचार करके लगातार बदनाम ही किया हैं।
आयुष पंचोली
#kuchaisehi #ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan #sanatandharm
No comments:
Post a Comment