प्रेम, भक्ति और ईश्वर तीनो को पाने का एक ही सरल मार्ग हैं, "समर्पण"।
समर्पण से ही आप इन्हे पा सकते हैं।
समर्पण मांगता हैं, कर्मो की शुद्धि, मन की पवित्रता, और वाणी की सत्यता।
कर्मो की शुद्धि अर्थात, ऐसा कोई कर्म ना किया जाये जिससे किसी भी प्रकार के मनुष्य या जीव को किसी प्रकार की कोई ठैस पहुँचे।
मन की पवित्रता अर्थात, किसी भी प्रकार के दूषित विचार का मन मे आगमन ही ना हो पाये।
वाणी की सत्यता अर्थात, जो कहो सत्य कहो। चाहे जिससे कहो। सत्य अपने आप मे बहुत पवित्र होता हैं। जो इन्सान को कभी कहीं किसी की नजरों मे शर्मिंदा नही होने देता।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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