Thursday, October 18, 2018

एक प्रार्थना महाँकाल से

बिगडे काज भी सँवर जाते हैं,
जब भी तेरे निकट आते हैं।
तु ही सबके भाग जगाता,
अन्तर मन का तिमिर मिटाता।
रोशन करता तु जग सारा,
कण कण मे हैं वास तुम्हारा।
मैं मुरख हूँ, अभिमान मे जीता,
भुल जाता हूँ, हैं तु जीवन दाता।
मेरी भुल क्षमा कर दीजे,
इतनी अरज मेरी सुन लीजे।
तुझको पाऊँ साथ मेरे मैं,
सुख-दुख चाहे लाख तु देना।
मेरे कर्म अनुरूप हो तेरे,
हे नाथ मुझे सनाथ कर देना।
मैं तुझको अर्पण करता हूँ,
मेरा तन और मन मेरा।
धन नही हैं पास मे मेरे,
तु ही ईश्वर धन हैं मेरा।
मैं अज्ञानी, अधम , मूर्ख हूँ,
मेरा स्वयं का समर्पण ,
स्वीकार कर लेना।
🙏🙏🙏🙏🙏

आयुष पाँचोली
©ayush_tanharaahi

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