वैशाख मास , शुक्ल पक्ष , तृतीया के दिन,
भृगु वंश मे एक बालक ने जन्म लिया था।
जमदग्नी और रेणुका के घर उस दिन,
विष्णू ने छटा अवतार लिया था।
दादा जी ने पौत्र का अपने ,
बडा ही सुन्दर नाम "राम" रखा था।
भृगु वंश की तीसरी पीढ़ी मे,
स्वयं नारायण ने एक ब्राह्मण के वंश मे जनम लिया था।
प्रारंभिक शिक्षा उन्होने,विश्वामित्र से पाई,
ऋचीक और कश्यप ऋषी से ,धनुष और मन्त्रो की शिक्षा पाई।
फिर उन्होने शिव को अपना गुरु और ईष्ट था माना,
घोर तपस्या से शिव को प्रसन्न उन्होने किया था।
शिव ने तपस्या से खुश होकर,परशु और पिनाक उनको दिया था।
शिव से मिले परशु के कारण ही , वे परशुराम कहलाये।
एक बार पिता की आज्ञा का पालन करने को,
माता का सर धड़ से अलग उन्होने किया था।
पिता ने पुत्र कि पित्रभक्ति से प्रसन्न हो,
माता कि उनको वापस उनको किया था।
मातृ वध के दोष से मुक्त होने को उन्होने भूमि दान का प्रण लिया था,
उठा के फरसा समुद्र की तरफ जोर से फेंका जहाँ गिरा फरसा वहाँ तक समुद्र ने जल था अपना सोख।
वही भूमि उन्होने ब्राह्मणों को दान करी थी,
वही आज का केरल हैं जिसे परशुराम ने रचा था।
जीवन भर तप किया उन्होने पुण्य बहुत सा कमाया,
धरती पर वैदिक सँस्कृति की अलख को था जगाया।
पिता कि हत्या के प्रतीशोध के लिए ,कई बार क्षत्रियों पर वह काल बनकर बरसे,
21 बार पृथ्वी से क्षत्रियो का संहार करके गरजे।
बहुत कठिन तप से उन्होने मनोजवं की शक्ती पाई,
और फिर अपनी पहचान शस्त्र वीद्या के गुरु के रूप मे बनाई।
फिर जब राम ने जनकपूरी मे शिव के धनुष को तोड़ा,
मिलन एक शक्ती के दो रूपों का वहां देखकर ब्रह्माण्ड भी था डोला।
फिर अपना संशय हरने को परशुराम ने पिनाक राम को सौंपा,
कहाँ चढ़ाकर इसपर पृतयन्चा, मेरा पुरा करदे भरोसा।
राम ने जब पृतयन्चा चढ़ाई, परशुराम फिर बोले ,
जय हो प्रभू इतनी जल्दी कैसे आप, फिर किस लिए अवतरित हुएँ हैं।
राम ने बोला पृतयन्चा को वापस नही हैं लेते ,
अब बोलो हम कैसे इसको ,और कहाँ पर छोड़े।
तीन चीज मे से आज एक का शय तो होगा,
आप, आपकी मनोजवं शक्ती या फिर आपके सारे पुण्यों का।
परशुराम फिर बोले प्रभू मेरा वध करके क्यों ब्रह्म हत्या का दोष सर लोगे,
मनोजवं की शक्ती हर लोगे तो मैं कैसे सफर करूंगा।
आप यह पृतयन्चा मेरे पुण्यों पर आज चलाओ,इससे 16 गुना आपका बल भी बढ़ जायेगा,
मेरे पुण्यों का फल सारा आपको मिल जायेगा।
नमन किया उन्होने राम को आगे सफर था करना,
आखिर उनको विष्णू की आज्ञा का था पालन करना।
वह कैलाश को पहुचें जब मिलने अपने शंकर को,
गणेश ने रोका उनको कहकर अपना परिचय दो।
फिर परशुराम ने अपना परशु फेंक गणेश को मारा,
एक दंत टूटा गणेश का और नाम एकदंत कहलाया।
अपनी विद्या को उन्होने अपने शिष्यो मे बांटा था ,
फिर द्वापर मे युध्द कला का ज्ञान उन्होने द्रोण, भीष्म और कर्ण को दिया था।
अपने तप और अपने बल से ब्राह्मणों को उन्होने सजाया,
इसलिये परशुराम अवतार ब्राह्मण शिरोमणि कहलाया।
विष्णू की आज्ञा हैं उनको कल्कि अवतार के गुरु आप ही बनोगे,
इसलिये कलयुग के अन्त तक आप पृथ्वी पर वास करोगे।
यही एक अवतार विष्णू का पृथ्वी के अन्त तक उपस्थित रहेगा,
जो जीवन पर्यन्त वैदिक रीति की बात करेगा।
🙏🙏"🕉 जमदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि,
तन्नोपरशुरामाय प्रचोदयात्।"🙏🙏
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan
No comments:
Post a Comment