Thursday, October 18, 2018

प्रेम

शिव का सती के प्रति,
राम का सीता के प्रति,
कृष्ण का राधा के प्रति,
श्रवण का अपने जन्मदाता के प्रति,
नन्दि का अपने आराध्य के प्रति,
एकलव्य का अपने गुरु के प्रति,
हनुमान का अपने इष्ट के प्रति,
भगतसिंह ,सुखदेव ,राजगुरु का
भारत माता के प्रति,
विवेकानन्द, कलाम का अपने
ज्ञान के प्रति,

जो समर्पण और आदर का भाव था वही प्रेम था।
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प्रेम दिखावा नही हैं, ना ही दो जिस्मों का बन्धन हैं । प्रेम कर्त्तव्य, समर्पण, आदर और जीवन की अभिव्यक्ति का नाम हैं। प्रेम तो किसी को भी किसी से भी हो सकता हैं, उसकी कोई लिखित परिभाषा नही हैं। ना ही कोई सजीव, निर्जीव का भेद हैं प्रेम मे।

किसी को ज्ञान से प्रेम हैं, किसी को मान से प्रेम हैं।
किसी को सजीव से, तो किसी को निर्जीव से प्रेम हैं।
किसी को अपने इष्ट से, तो किसी को अपने मित्र से प्रेम हैं।
किसी को तन से, तो किसी को वतन से प्रेम हैं।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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