Thursday, October 18, 2018

सामाजिक दोहे

पैसा-कोडी जोड-जोड़ कर महल लिया बनाय,
फिर भी सोच रहा इन्सान, खुशी कहाँ से लायें। (1)

सोच-विचार दूषित हैं सबके, कर्म हो गये शुन्य,
अपराधी सारा जग होया, निर्दोष हो गये गुम। (2)

सत्य पृताडित होता रह्ता, झुठ कलयुगी धर्म,
कर्म विमुख मानव हो बैठा, ज्ञान हुआ हैं विलुप्त। (3)

सतयुग मे भक्ति महान थी, त्रेतायुग मे धर्म,
द्वापर मे कर्म पूज्य था, कलयुग मे हैं धन । (4)

जीवन मे उपलब्धी पाना कोई मुश्किल काम नही,
सत्य और परिवार को भूलकर पाया जो, वो कुछ भी सम्मान नही। (5)

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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