मैं ब्रह्मा के मुख से निकली वाणी हूँ,
मैं ग्रंथो का रचियता, मैं वेदों का ज्ञानी हूँ।
मैं साम , दाम, दंड ,भेद का दाता,
मैं ही अवतरित प्रथम पुरूष महादानी हूँ।
मैं भक्ति की परकाष्टा,
मैं दावानल सा क्रोध धारी हूँ।
मैं जल सा शीतल हूँ,
मैं वायु सा वेगधारी हूँ।
मैं गुरु हूँ, मैं सखा हूँ,
मैं ही तो सन्यासी हूँ।
मैं धर्म ध्वजा का वाहक हूँ,
मैं साधना से पोषित साधक हूँ।
माना मैं निर्धन गरीब हूँ,
पर मैं ही राजतंत्र का ज्ञाता हूँ।
मैं अखंड भारत का सपना,
पुरा करने वाला हूँ।
मौर्य वंश को राजनीति का,
ज्ञान सिखाने वाला हूँ।
मैं समुद्र को एक घूंट मे,
पुरा पीने वाला अगस्त्य हूँ।
मैं तप से खुद को बनाता,
मैं यज्ञों की आहुति हूँ।
मैं यज्ञोपवीत का मान हूँ रखता,
मैं गायत्री का अभिमान हूँ।
मैने सबको ही सम्मान दिया हैं,
ज्ञान को अत्यधिक मान दिया हैं।
देशभक्ति की खातिर मैने,
हर पल ही बलिदान दिया हैं।
मैं निर्बल हूँ ये ना समझो,
मेरे इतिहास गाता हैं, भारत का कण कण।
भारत आज जो खडा हुआ हैं,
मेरी ही प्रतिज्ञा का आधार हैं।
बरसो पहले सिकंदर को हराने मे,
मेरी युति ही जिम्मेदार थी।
फिर भी हँसकर हर अपमान हूँ सहता,
नही किसी को बुरा मैं कहता।
मैं अपनी मर्यादा की सीमा को पहचानता हूँ,
इसलिये अपनी सीमायें नही लाँघता हूँ।
मुझे नही किसी से कोई भिक्षा ना ही कोई दान चाहिये।
मुझे तो बस अपना सम्मान चाहिये।
वहीं सम्मान जिसका हकदार हूँ मैं,
वहीं सम्मान जिसका आधार हूँ मैं।
🙏🙏🙏🙏🙏
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan
मैं ग्रंथो का रचियता, मैं वेदों का ज्ञानी हूँ।
मैं साम , दाम, दंड ,भेद का दाता,
मैं ही अवतरित प्रथम पुरूष महादानी हूँ।
मैं भक्ति की परकाष्टा,
मैं दावानल सा क्रोध धारी हूँ।
मैं जल सा शीतल हूँ,
मैं वायु सा वेगधारी हूँ।
मैं गुरु हूँ, मैं सखा हूँ,
मैं ही तो सन्यासी हूँ।
मैं धर्म ध्वजा का वाहक हूँ,
मैं साधना से पोषित साधक हूँ।
माना मैं निर्धन गरीब हूँ,
पर मैं ही राजतंत्र का ज्ञाता हूँ।
मैं अखंड भारत का सपना,
पुरा करने वाला हूँ।
मौर्य वंश को राजनीति का,
ज्ञान सिखाने वाला हूँ।
मैं समुद्र को एक घूंट मे,
पुरा पीने वाला अगस्त्य हूँ।
मैं तप से खुद को बनाता,
मैं यज्ञों की आहुति हूँ।
मैं यज्ञोपवीत का मान हूँ रखता,
मैं गायत्री का अभिमान हूँ।
मैने सबको ही सम्मान दिया हैं,
ज्ञान को अत्यधिक मान दिया हैं।
देशभक्ति की खातिर मैने,
हर पल ही बलिदान दिया हैं।
मैं निर्बल हूँ ये ना समझो,
मेरे इतिहास गाता हैं, भारत का कण कण।
भारत आज जो खडा हुआ हैं,
मेरी ही प्रतिज्ञा का आधार हैं।
बरसो पहले सिकंदर को हराने मे,
मेरी युति ही जिम्मेदार थी।
फिर भी हँसकर हर अपमान हूँ सहता,
नही किसी को बुरा मैं कहता।
मैं अपनी मर्यादा की सीमा को पहचानता हूँ,
इसलिये अपनी सीमायें नही लाँघता हूँ।
मुझे नही किसी से कोई भिक्षा ना ही कोई दान चाहिये।
मुझे तो बस अपना सम्मान चाहिये।
वहीं सम्मान जिसका हकदार हूँ मैं,
वहीं सम्मान जिसका आधार हूँ मैं।
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आयुष पंचोली
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