Thursday, October 18, 2018

माहवारी

हमारा भारत वर्ष बहुत विशाल पुरातन संस्कृति का धनी हैं। जितनी सभ्यतायें हैं यहाँ उतनी ही मान्यताये और उतनी ही विचार धाराये हैं।
आप सभी लोग माता सती की कहानी से तो भलीभाती अवगत हैं। माता सती ने जब अपनी देह त्याग करी थी, और शिवजी उन्हे लेकर पुरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगा रहे थे, तब शिवजी वैराग्य ना धारण करले इस कारण माता सती की देह को भगवान विष्णू ने अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो मे विभाजित कर दिया था, और यह 51 भाग आकर गिरे थे अखंड भारत वर्ष की भूमि पर, जो बाद मे 51 शक्तिपीठ कहलायें।
इन्ही 51 शक्तिपीठो मे से एक शक्ती पीठ हैं, "माँ कामाख्या" शक्ती पीठ, जहां माता सती का योनि भाग गिरा था। असम के गुवाहाटी से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित है देवी सती का कामाख्या मंदिर। 51 शक्तिपीठों में से सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाला यह मंदिर रजस्वला माता की वजह से ज़्यादा ध्यान आकर्षित करता है। यहां चट्टान के रूप में बनी योनि से रक्त निकलता है। प्रती वर्ष मई से जून माह के बीच यहां माता रजस्वला होती हैं, और योनि से तीन दिन तक लगातार रक्त प्रवाह होता हैं, जिससे यहां उपस्थित ब्रह्मपुत्र नद का कुंड पुर्ण रूप से रक्त मिश्रित जल से युक्त हो जाता हैं। और यहां भक्तो को प्रसाद स्वरूप वही जल और यानी के रक्त का वही कपड़ा दिया जाता हैं, जो रजस्वला होने के दौरान मन्दिर के गर्भ गृह मे रखा जाता हैं।
मैने यहां यह लेख सिर्फ और सिर्फ इसलिये लिखा हैं, क्युकी कुछ लोग मानते हैं की रजस्वला होना गलत हैं, उस दौरान स्त्रियो के साथ अछूत सा व्यव्हार किया जाता हैं, पर आप खुद सोचिये यह स्त्री के जीवन की एक प्रक्रिया हैं। स्वयं जगत जननी भी जिससे गुजरती हैं, इस से स्त्री अपवित्र नही पवित्र होती हैं। और अगर उसी अवस्था मे आप कीसी स्त्री रूप का सम्मान करते हैं, तो आम स्त्री का अपमान क्यो?

यह समय जिस वक्त स्त्री रजस्वला होती हैं, उस समय उनके शरीर का तापमान आम स्त्री पुरुष की अपेक्षा 10 गुना तीव्र होता हैं, जिस कारण उन्हे आराम करने की सलाह दि जाती हैं, ना की हम लोगो को उनका अपमान करने की।
पर रह कर बात वही आ जाती हैं, हम समाज के बनाये नीयमो को भेड़ चाल की भाती ही, अपनाते आये हैं, और अपनाते रहेंगे। क्युकी अगर कोई प्रश्न उठाया तो समाज हमारा बहिष्कार जो कर देगा।
मैं किसी को दोष नही दे रहा , पर एक प्रश्न जरुर करना चाह्ता हूं सबसे-
"अगर किसी अवस्था मे आप स्त्री के एक रूप को शिरोधार्य करते हैं, तो उसी अवस्था मे किसी दुसरे रूप का अपमान क्यों ?"

प्रक्रिया हैं, जो किसी कन्या के स्त्री शरीर मे ढल जाने की,
प्रक्रिया हैं ,जो स्त्री के स्त्री होने के एहसास की,
प्रक्रिया हैं,जो मनुष्य के पृथ्वी पर जन्म लेने के क्रिया कलाप की,
प्रक्रिया हैं, जो नारी के शुद्धिकरण के,
प्रक्रिया हैं, जो सृष्टि के नर समूह के उद्धार की,
स्वयं जगत जननी भी दूर नही रह पायी जिससे,
जगत को स्त्री के अस्तित्व का सबूत हमेशा से वो देती आई हैं जिससे,
प्रक्रिया हैं, जो आरम्भ की,
प्रक्रिया हैं, जो स्त्री को ईश्वर द्वारा मिलने वाले सम्मान की,
प्रक्रिया हैं, जो स्त्री के शक्ती संचार की।

फिर कैसे वो घृणा का पात्र हुई,
स्त्री रजस्वला कहलाई तब जाकर वो देवी के समान हुई।

आजएक प्रश्न करता हूँ मैं, उन समाज के सभी ठेकेदारो से,
जिस रूप ,जिस अवस्था मे पूजते हो तुम किसी देवी के गिरे अंग को, माहवारी की जिस प्रकिया के आरम्भ को,
तो आम स्त्री का उस प्रक्रिया मे अपमान क्यो।
नारी हैं, गर पूज्यनीय तो उसके शुद्धीकरण की प्रक्रिया का तिरस्कार क्यों....!!!!

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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