ब्रह्मांड की हैं, शक्ती का स्तोत्र वो,
हर एक आरम्भ की हैं ,ज्योत वो।
शिव को जिसने अपने समरूप जाना,
जिसने उनको अपना वर हैं माना।
महाकाल की महाकाली हैं वो,
तीन लोक , चौदह भुवन की रखवाली हैं वो।
वो संहार कर्ता की हैं अर्धांगनी,
सृष्टि के आरम्भ की है पहचान वो।
पन्चतत्वों की, हैं वो कारक,
मनुष्य की कुण्डलिनी मे स्थित शक्ती हैं वो।
प्रजापति दक्ष के यहाँ सती रूप मे हुई अवतरित,
बैरागी शिव को था जिसने अपनाया।
नवदुर्गा, दसो महाविद्याओं, 51 शक्ती पीठो,
को जो करती हैं संचालित वही जागृत शक्ती हैं वो।
पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेकर,
शैलपुत्री हैं जो कहलाई, वो नारायणी हैं वो।
ब्रह्मचारिणी हैं, चन्द्रघन्टा हैं,
तारा, कमला, कात्यायनी हैं वो।
स्कन्दमाता, कूष्माण्डा, त्रिपुरसुन्दरी,
सिद्धिदात्री , महगौरी हैं वो।
कालरात्रि, छिन्नमस्ता,षोडशी,
मातंगी, भुवनेश्वरी, बगलामुखी हैं वो।
हैं विधवा स्त्री का भी एक रूप,ब्रह्मांड को जो करदे ,
अपनी वेदना से ही लुप्त, ऐसी माँ धूमावती हैं वो।
चंड-मुंड की संहारक, चामुंडा हैं, त्रिदेवो और आदिशाक्ती
की शक्ती से युक्त महिषासुरमर्दिनी हैं वो।
माता भी हैं, दाता भी हैं,
प्रेम की मर्यादा हैं तो, क्रोध की परकाष्टा हैं वो।
दुर्गा भी हैं, काली भी हैं,
कपाल धारण करने वाले स्वामी कि वो कपाली भी हैं।
आदी हैं, ना ही अन्त हैं उसका,
शक्ती का स्तोत्र हैं, वो नूर हैं ब्रह्माण्ड का।
दंभ को करती हैं जो पल मे ही शुन्य,
जगत का भरण पोषण करने वाली ,
माँ आदिशाक्ती ही , काल को बदलने वाली हैं वो।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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