Thursday, October 18, 2018

शिव

जो शव हैं , वो शिव हैं। शव अर्थात मनुष्य के शरीर की वो अवस्था जहाँ वो राग, द्वेष, मान,सम्मान हर प्रकार के भावों से मुक्त होता हैं, और जो सभी भावो से मुक्त है, वही शिव हैं।

वो आरम्भ है, वो अंत हैं।
वो यन्त्र , तन्त्र, मन्त्र है।
वो ज्ञान है, विज्ञान हैं।
वही तो, सर्वशक्तिमान हैं।
मुझमे हैं,वो तुझमे हैं,
वहीं हैं जो सभी मे हैं।
ब्रह्मांड हैं,वही ओंकार नाद हैं,
तत्व है, वो सत्व हैं।
सत्य वो, असत्य वो,
जो हुआ वही हुआ, जो नही हुआ वही तो हैं।
वो एक हैं, अनेक हैं,
विवेक हैं, महेश हैं।
वो काल हैं, कपाल हैं,
वही तो महाकाल हैं।
वो धर्म हैं, वो कर्म हैं,
दर्द का वो मर्म हैं।
वो आज हैं, नटराज हैं,
वही हैं जो एक राज हैं।
वो घोर हैं, अघोर हैं,
जीवन की वो डोर हैं।
वो नाथ हैं, सनाथ हैं,
काशिपती विश्वनाथ हैं।
ईश्वर भी वो, नश्वर भी वो,
जो राम के रामेश्वर हैं।
सभ्य हैं, वो सौम्य हैं,
सोम्ंधारि सोमनाथ हैं।
मुण्डमाल धारण किये,
त्रिशूल साथ मे लिये,
करते वही संहार हैं,
वो केदारनाथ हैं।
ज्ञान का भण्डार हैं,
शक्ती का संचार हैं,
त्रिनेत्र धारि, त्रयम्ब्केश्वर
अवतार हैं।
मान,सम्मान,अपमान,
राग,द्वेष,छल,कपट,से दूर
शव समान,स्मशान की शान हैं,
वो बैद्यनाथ भगवान हैं।
निस्छल हैं वो, पवित्र हैं,
नाग को धारण किये,
वन मे करते निवास
नागेश्वर नाथ हैं।
पृथ्वी हैं,आकाश हैं,
सभ्यता का विकास है,
मालिक हैं वो, श्रमिक भी वो,
मल्लिकार्जुन महादेव हैं।
नर्मदा की गोद मे,
शिवत्व के आधार वो,
ओंकार से जुड़े मम्लेश्वर नाथ हैं।
संसार के मूलाधार वो,
जगत के है ,आधार वो,
जहाँ मिले,निर्भय करे
भिमाशंकर रूपी प्रताप हैं ।
शक्ती का वो गर्व हैं,
भक्ति का प्रताप हैं,
वो घुश्मेश्वर नाथ हैं।
वो शक्ती हैं, विरक्ति हैं,
वही हैं जो मुक्ति हैं।
वो दाता हैं, विधाता हैं,
मोक्ष के प्रदाता हैं।
जो हुआ उनसे हुआ,
जो नही हुआ ,वही तो हैं,
या जो होने वाला हैं,
उनसे हैं , उन्ही मैं हैं।
गीता का वो सार हैं,
युगों का विस्तार हैं।
वो शांत है, विक्रान्त हैं,
आदियोगी वो, अवधूत हैं,
वो मौन मे, समाधि मे,
आदि अनन्त अनादि हैं।
ब्रह्माण्ड का फैलाव वो,
फैलाव का हैं अंत वो।
व्यक्ति की कुण्डलिनी मे,
तत्वो का वो सार हैं।
जो कहा वहॉ कहा ,
जो बच गया वही तो हैं,
हर क्षण , हर कण
हर पल, समय की चलती हुई वो चाल हैं।
मृगछाला ओड़े, भस्म धारण किये,
त्रिपुण्ड रमाये, त्रिनेत्र धारि हैं,
नीलकंठ, गंगाधर हैं,
वो ही धरा वो अम्बर हैं।
है सबसे अलग , उनसे हैं
आज उनसे हैं कल,
वो भूत , भविष्य, वर्तमान हैं,
हर पल बड़ाते भक्त का वो मान हैं।

शव के समान, होकर भी जो सबके हैं,
वही हैं "शिव"
"शिव" "शिव" "शिव"

..................................................................................

आयुष पंचोली

©ayush_tanharaahi

No comments:

Post a Comment