Thursday, October 18, 2018

एक प्रार्थना

हे ईश्वर होना हैं नश्वर, तन यह मेरा,
विरह-व्यथित मैं दीन-दुखी हूँ ।
तुम हो दयालु, दीनबन्धु हो,
तुम रक्षक कर्ता हो मेरे हैं।
एक अरज, दरस की तुम्हारी,
इतनी विनती ही करता हूँ।
हे मटमैला, मन यह मेरा,
पाप से पोषित तन यह मेरा।
एक ना एक दिन खो जाना हैं,
पन्चतत्व से बनी देह को,
पन्चतत्व मे मिल जाना हैं।
जब तक साँस रहे हैं जीवन मे,
एक आस बस मेरी हो।
दंभ, मोह, मद से हर पल की,
ईश्वर मेरी दुरी हो।
पल-पल हर क्षण मेरा,
प्रभू समर्पित हो ,सिर्फ तुम्हारे चरणो मे।
परोपकार का भाव सदा हो,
ईश्वर मेरे शब्दो, मेरे कर्मो मे।
कोई आत्मा दुखी नही हो,
कभी मेरे कुछ कर्मो से।
नही मोक्ष चाहता मे ईश्वर,
बस इतना तुम वर देना,
माँ का मान,पिता का सम्मान,
कभी कहीं ना खोने पाये,
ईश्वर मेरे कर्मो से।
कोई दुजी नही हैं ख्वाईश,
एक प्रार्थना मेरी हैं,
हे, प्रभू चाहे जहां भी ,अन्त जब भी मेरा हो ,
चाहे जैसे, जहाँ रहूँ मैं,
रहूँ तुम्हारे चरणो मे।

आयुष पंचोली

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