उपवास
अर्थात अशुद्ध विचारों का , अशुद्ध भावो का , अशुद्ध कर्मो का, अशुद्ध वस्तुओं का , झुठ का, बैर का, अशुद्ध वाणी का त्याग ।
अगर यह नही कर सकते तो फिर किसी उपवास की कोई महत्ता नही हैं। दिखावे के लिये व्रत रख कर ईश्वर का पूजन नही किया जाता। पहले अपने आप को उस ईश्वर के अनुरूप ढालना होता हैं। सिर्फ अन्न और जल का त्याग किसी भी रूप से उपवास या व्रत की श्रेणी मे नही आता। अशुद्धता जो आपमे किसी भी रूप मे विध्य्मान हैं, असल मायनो मे उसका त्याग ही व्रत कहलाता हैं।
!!जय श्री महांकाल!!
!!🕉 नमः शिवाय!!
©ayush_tanharaahi
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