गौरी सुरत, काली सीरत,
क्या अजीब ये माया हैं।
जिसको दी तन की सुन्दरता,
शर्म हयाँ उससे छिनी।
जिनके मन सुन्दर होते हैं,
वो कहाँ किसी को भाते हैं।
सुन्दर चेहरे , ही लोगो को
अपनी और लुभाते हैं।
क्या अजीब माया हैं तेरी,
तु कर्ता , तु कारक हैं।
हम कठपुतली तेरे हाथ की,
तु जीवन का संचालक हैं।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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