...शैव, वैष्णव और शाक्य...
तीन पंथ, भक्ति के तीन मार्ग। जीवन को जीने की तीन अलग धारायें।
शिव को सबकुछ मानने वाले शैव, जिन्हे व्यवस्था से नही आस्था से मतलब होता हैं, दिखावे से नही कर्म से जो अपने आपको साधते हैं। मान, सम्मान के आडम्बर और किसी भी प्रकार के भेद-भाव से जो परे हैं,असल मायनो मे वो ही शैव हैं।
शक्ती के उपासक शाक्य, जिन्होने सबसे बढ़कर शक्ती को पृकृति को माना हैं। जिनके लियें शक्ती और भक्ति एक समान हैं। जिनके लिये अंत ही आरम्भ हैं। जिन्होने सबकुछ सिर्फ पृकृति को माना वो ही शाक्य हैं।
व्यवस्था को मानने वाले, जिन्हें सबकुछ व्यवस्था मे रहकर , पाना होता हैं। जो नीयमों को मानते हैं, तथा उसी रूप मे उनका पालन करते हैं। जो समाज को जोडते हैं, समाज को संघठित कर रहना चाहते हैं। वही असल मायनो मे वैष्णव हैं।
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आज अगर देखा जायें तो कोई पंथ बचा ही कहाँ। लोगो ने अपने अनुसार सबकुछ तोड मरोडकर रख दिया। धर्म की रक्षा का बीड़ा उठाने वालों ने ही धर्म को क्षतिग्रस्त कर दियां। कोई पंथ कोई धर्म किसी से बड़ा किसी से छोटा नही हैं, सभी के अपने अपने मायने हैं। और सभी मे कुछ ना कुछ तो अनोखा हैं। जो सत्य भी हैं। अगर हम लोगो ने लोगो का कहाँ सुनने और उनका दिखाया देखने की जगह , हमारे ग्रंथो को वेदों को पढ़ने और समझने की और ध्यान दिया होता तो समझ आता, हम क्या हैं, और किस व्यवस्था का हिस्सा हैं।
पर इसे हमारा दुर्भाग्य कहें या इस भूमि का , की इसके अपनो ने ही इसके ज्ञान को खंडित कर दियां। औंर जो अब बचा वो उस ज्ञान का अंश मात्र भी नही जो असल मायनो मे ज्ञान था।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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