Thursday, October 18, 2018

प्रेम...एक रिश्ता रूह से रूह का

✍प्रेम

प्रेम ही तो हैं जगत मे जिसने सबको जोड़ा हैं,
किसी का किसी के साथ से, तो किसी को अपने आराध्य से नाता जोड़ा हैं।

कोई अछुता नही हैं, जग मे प्रेम की करुण पुकार से,
क्या ईश्वर,क्या मानव ,क्या जीव , क्या दानव सबको प्रेम ने छेड़ा हैं, ये प्रेम का राग ही बड़ा सुनहरा हैं।

महलो मे जन्मी सती, सब सुख जिसके अधीन थे,
प्रेम कि खातिर सारे सुखो को उसने पलभर मे छोडा था।

उसी सती के प्रेम वियोग मे देखो कैसे,
जगत का संहार कर्ता भी सबकुछ भुल कर बैरागी बन बैठा था।

क्या गौरी को कमी थी बोलो , क्या उसका संसार था,
बरसो तपस्या करी थी , उसने पाने को अपने प्रेम को,
प्रेमी भी देखो कैसा, श्मशान जिसका निवास निवास था।

उसी शिव के प्रेम को देखो कितना सुदृढ़ विशाल था,
इन्तजार मे शक्ती के जिसने काटा कितने ही कल्पो का समय विशाल था।

एक प्रेम नंदी का भी ,देखो कितना महान था,
सबकुछ अपना कर दिया समर्पित अपने ही आराध्य को,
आराध्य ने भी दे दिया उस प्रेम का फल उस नादान को।

प्रेम ही तो हैं, जिसने सीता के लिये राम को वन वन मे भटकाया था,
प्रेम ही था वो, जिस कारण प्रभू ने शबरी के जुठे बैर भी खाये थे।

प्रेम ही था वो अपने ईष्ट के लिये , जो हनुमत लाँघ समुद्र को लंका से,
माँ सीता की खबर ले आये थे, एक बार वापस प्रेम कि खातिर उत्तर से पर्वत भी ले आये थे।

प्रेम ही था जिसने सागर पर पत्थरो को भी तैराया था,
अपनी अर्धांगनी को लाने राम ने सेतू जो बनवाया था।

प्रेम ही था वो हनुमत का अपने राघव के खातिर,
जो सीना फाड़ दिखाया था, देखो उनके सीने मे भी राम ही राम समाया था।

प्रेम ही था वो जिसने वृंदावन को मुरली की तान पे अपना बनाया था ,
प्रेम ही था वो जिसके खातिर उस कान्हा ने वो दिव्य रास रचाया था।

प्रेम कि खातिर राधा ने देखो कितनी पीड़ा सही,
प्रेम ही हैं, जो अब भी राधा-श्याम के साथ ही पूजी जाती हैं।

प्रेम ही था वो जो कान्हा मित्र से मिलने को दौडे दौडे आये थे,
देख के मित्रता की वो मूरत उस दिन, तीनो लोक असंख्य पुण्यों मे नहाए थे।

प्रेम ही था वो जो मीरा को श्याम के सिवा कुछ पता नही था,
देखो कितना अद्भूत, कितना दिव्य रूप हैं, प्रेम के संसार का।

प्रेम ही था वो आजादी का, जिसने लाखो वीरों का बलिदान माँगा था,
प्रेम ही था वो मात्रभूमि से , जो लहू से इसको नहलाया था।
कितने बेटों ने अपनी माता का कर्ज चुकाया था।

प्रेम ही सैनिक करता हैं, अपनी मातृभूमि की आन से,
लड़ने जो चल जाता हैं, छोड़ परिवार भी मातृभूमि कि शान मे।

क्या सच मे हमने , कभी प्रेम को समझा हैं,
प्रेम पवित्र हैं, उतना ही जितना गीता का ज्ञान हैं।
प्रेम पाक हैं, उतना ही जितनी मस्जिद की अजान हैं।

भक्ति, मित्रता,परिवार और देश प्रेम मे भी प्रेम ही होता हैं,
जो सारे सम्बन्धो को सिर्फ विश्वास और आस से जोडता हैं।

प्रेम तो बस समर्पण का ही भाव समझता हैं,
कोई दिखावा, कोई छलावा प्रेम मे कहाँ चलता हैं।

प्रेम पूज्य हैं, पूजो इसको, मत इसका अपमान करो।
जिस्मो मे क्या रक्खा हैं, जज्बातों का सम्मान करो।

🙏🙏🙏🙏

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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