मैं मन्दिर से मस्जिद तक फिर ढूंढ उसे ही आया हूं ।
दर दर भटका भूखा प्यासा, फिर ही ज्ञान ये पाया हूं।
ना मन्दिर मे,
ना मस्जिद मे,
ना ही किसी देवालय मे,
ना पत्थर की मूरत मे,
ना बसा हैं वो इन मजारो मे,
जो इन्सान को इंसा समझे,
रहता हैं वो,
उनके दिल के गलियारों मे।
बच्चों की चंचलता मे वो,
मात-पिता के चरणो मे,
मन की आँखो से देखो तो,
नजर तुम्हे आ जायेगा।
क्या पता वो ईश्वर तुमको,
खुद मे ही मिल जायेगा।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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