दक्ष कन्या दिति और महर्षि कश्यप से उत्पन्न हुएँ दो पुत्र,
हिरन्याक्ष और हिरण्यकश्यपू , दोनो राक्षस प्रवृत्ति के थे स्वामी।
हिरन्कश्यपू ने कठोर तपस्या से था बृह्मा को रिझाया,
और अजेय होने का अद्भूत वरदान था पाया।
अपने अनुज को फिर वह बोला अब हम दोनो अजेय हैं,
ऐसा कोई नही हैं तीन लोक मे जो हमसे टकराये।
अपने भ्राता के इन वचनो को सुनकर अनुज ने सोचा,
क्युं ना अब जाकर देवो को ही जाये दबोचा।
उन दोनो ने सारे लोको को था जीता,
और पृथ्वी को रसातल मे जाके धकेला।
पृथ्वी का गुम होना सुनकर , हाहाकार मची जब ,
अपने शयन से नारायण थे जागे तब।
पृथ्वी को वापस लाने को नारायण ने बोला,
देख के उनके उस कोंप को सारा ब्रह्माण्ड था डोला।
अपना तीजा अवतार फिर नारायण ने लिया था ,
"वाराह" का रूप धरा भगवन ने सबको सुखी किया था।
जब भगवन पहुँचे समुद्र पर हिरण्याक्ष को देखा,
और उस निर्लज्ज ने प्रभू को पशु कहकर रोका।
वह बोला सारा ब्रह्माण्ड हमारा हैं अब,
और जिसे शक हो आकर वो हमसे युद्ध करे अब।
"वाराह" रूप मे भगवन ने जब अपना सुदर्शन छोड़ा,
अगले पल मे हिरण्याक्ष के सर को धड़ ने छोड़ा।
भुल गया था वो असुर वरदान भ्राता को मिला था,
क्युं किस बात पे उसने फिर खुद को ईश्वर समझा था।
वध किया भगवन ने असुर का ,
फिर समुद्र मे कुदे।
उठा के पृथ्वी को दंतो पर,रसातल से बाहर लाये,
यह अवतार जिसने पृथ्वी को समुद्र से था निकाला ,
श्री नारायण का तीसरा अवतार "वाराह" अवतार कहलाया।
भगवन ने बोला भक्तो को चिंता क्यों करते हो,
जब जब संसार मे दुष्टों का अत्याचार बड़ेगा ,
तब तब असुर नाश को मेरा यहाँ आगमन होगा।
बड़ी निराली लीला प्रभू की , बड़ी ही मोहक माया,
देखो किस किस रूप मे नारायण ने जीवन को हैं बचाया।
शत-शत मैं प्रणाम हूँ करता, प्रभू के सब रूपों को,
बारम्बार नमन हैं मेरा, प्रभू के श्री चरणों को।
🙏🙏🙏🙏
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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