कुछ ना होते हुँए भी मैने सबकुछ पा लिया,
जबसे मैने मेरे प्रभु से दिल लगा लिया!!!
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होठ लगाई बाँसुरी
तो ठहर गया ब्रजधाम !
थिरकने लगी राधिका
जब मुस्काये घनश्याम !!
!!Զเधे Զเधे!!
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फलसँफा जिन्दगी का बस इतना ही समझ पाया हूँ,
हर कोई यहाँ इश्क मे बेहाल हैं,
जिसे बक्शी खुदा ने नैमत इश्क की वो ख्वाईशों के आगे लाचार हैं।
उम्मीद त्याग दी जिसने सबसे, कर्म और प्रभु को सबकुछ मान लिया,
बस यहाँ वही इन्सान खुशहाल हैं।
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आयुष पंचोली
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