जब मोहब्बत नफरत मे बदलती हैं ना, ये लम्हा वहीं लम्हा होता हैं, जब इन्सान जीने की ख्वाईश ही नही जीना भी छोड़ देता हैं। फिर उसे कोई फ़र्क नही पड़ता किसी की अच्छाई से या किसी की बुराई से। उसे इन्तजार होता हैं , बस उस पल का कब वो अंतहीन समाधि की अवस्था मे जायेगा। जहाँ सिर्फ और सिर्फ मौन हैं। वहीं मौन जो अन्त का सूचक और नये जीवन का कारक हैं।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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