Thursday, October 18, 2018

कुछ ऐसे ही

वर्तमान परिस्थितियों मे जो कुछ हमारी आँखों के सामने घटित हो रहा हैं, उसे देखकर लगता ही नही कि हम उसी देश मे रह रहे हैं, जिसका गुणगान सभ्यता, पवित्रता, और सम्मान के लियें किया जाता था। इसे पाश्च्चात्यता का प्रभाव कहें, या सिनेमा का, या फिर आधुनिकता का । पर जो भी हो अब भारत वह भारत नही रहा जहाँ स्त्री के लिये लज्जा ही उसका गहना थी। जहाँ हर पुरुष परस्त्री को अपनी माँ और बहन समान समझता था। जहाँ सत्य की खातिर लोग अपने जीवन का भी बलिदान दे देते थे। आज जो कुछ भी नजर आता हैं, उसमे ऐसा तो कुछ देखने को नही मिलता। शायद यह हमारी ही कमजोरी हैं, या यू कहले यह हमारी ही बुराई हैं , की हम हर संस्कृति को बहुत जल्दी अपना लेते हैं। और आज जो कुछ भी हो रहा हैं, उसका कारण यही हैं, की हम अपनी संस्कृति को बहुत हद तक खो चुके हैं, और शायद आने वाले कुछ वर्षो मे पूर्णतः खो देंगे। फिर अपनी आने वाली पीडियों को अपने ही संबंधो को छलते देख हाथ मलते रहेंगे । सच ही कहा हैं किसी ने "विनाशकाले विपरित बुध्दि"।

आयुष पंचोली




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