मोह, माया, का हैं साया,
बड़ा ही अद्भूत खेल रचाया।
जो देता हैं, उसी को देते,
देकर दानी कहलाते हैं।
नाम लिखा कर दिवारों पर,
अपनी ख्याति बडाते हैं।
देखो कैसी मनुष्य की सोच हो गई,
ईश्वर की बनाई कलाकृति मे कही ना कही तो खोट हो गई।
जिसने बनाया जग सारा,
उसको ही नीलाम कर दिया।
चंद रुपयो की खातिर देखो,
व्यक्तियों ने धर्म को ही बदनाम कर दिया।
कहाँ गई वो भक्ति आज जो,
शक्ती भक्ति की बतलाती थी।
सुना था हमने परमहंस के हाथो से,
जगतजननी खाना भी खाती थी।
आज तो बस अपनी ख्याति को,
लोगों ने सरेआम कर दिया।
रख कर ईश्वर की मूरत मन्दिर मे,
नीचे अपना नाम कर दिया।
जिसने दिया हैं सबकुछ तुमको,
उसको देकर एक तुच्छ भेंट ,
सरेआम ढिंढोरा पीट आये हैं,
ढोल और बाजो के साथ मे सारे शहर मे खुद का जुलुस निकलवा आये हैं।
क्या सच मे यही हैं भक्ति,
या माया का खेल निराला हैं।
देने वाले को ही लौटा कर के,
भिकारी जश्न मनाता हैं।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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