तलाश खुद ही की करता रहता हूँ मैं,
ना जाने क्युं मैं आज तक मुकम्मल हो नही पाया।
बड़ी सुनसान सी डगर हैं, सत्य की राह की, देखो,
शायद इसलिये आज तक किसी का हो नही पाया।
मुझे अफसोस थोडा सा भी नही मेरे दाता,
मैं आज भी देखो तुम्हें ,हर पल मेरे ही साथ पाता हूँ।
किसी का होना ना होना कहाँ जीवन को देता हैं,
प्रभु का होके, उनको पाने से ही तो जीवन मुकम्मल होता हैं।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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