Tuesday, October 30, 2018

नमन है मेरा

नमन करता हूँ मैं,

मेरि मातृभूमि,मात-पिता,
मेरे गुरुवर की हर एक देन को।

नमन हैं मेरा,

मेरे अन्न्दाता, मेरे रक्षक,
मेरे देश के वीर जवानों और कृषकों के,
कर्म के पसीने की हर एक बूँद को।

नमन हैं मेरा,

सच का पूजन करने वाले,
इन्सान को इंसा समझने वाले,
हर एक मनुष्य की सोच को।

नमन हैं मेरा,

वतन की खातिर ,
बलिदान हुएँ हर एक जीव के,
रक्त की हर एक बूंदो को।

नमन हैं मेरा, इन को हरपल,
दिन के आगाज के साथ मे।
ईश्वर तुझसे पहले ,
और तुझको बाद मे।
तुझे नमन ना कर पाऊँ तो,
हर दण्ड मुझे स्वीकार हैं।
इनको नमन ना कर पाऊँ तो,
इस जीवन पर धिक्कार हैं।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

#ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan #kuchaisehi

Sunday, October 21, 2018

मैं भारत हूँ...

मैं राजा दुष्यंत और शकुन्तला के प्रेम की मिसाल हूँ,
उनके पुत्र भरत के तेज और वीरता का बखान हूं।
उसी पुत्र के नाम से रोशन हुआ एक सम्मान हूं,
भरत के नाम से कहलाया भारत,
मै सत्य का पोषित ज्ञान हूँ।
मै सनातन , मैं अखंड था,
मैं सिन्धु सभ्यता का मान था।
जम्बूद्विप के उत्तर और हिमालय के दक्षिण मे बसा मे,
अखंड भारत देश महान था।

अब खंडित होकर भारत कहलाया,
मैं ही हूँ जो पुरा काल मे विश्वगुरु का नाम था।
मैं पुरातन, मैं श्रेष्ठ , मैं देवो और ऋषियों के ,
रहने लायक स्थान था।

मैने क्या कुछ नही हैं देखा,
कितने कालों को है , भोगा।
फिर भी अब तक देखो कैसे,
कितना सबकुछ खुद मे समेटा

मैं रामायण, मैं महाभारत,
मैं ग्रंथो और वेदो का ज्ञान हूँ।
मैं सनातन, मैं पुरातन,
मैं गीता का अभिमान हूँ।

मैं राम की मर्यादा हूँ,
मैं कृष्ण की मुरली की तान हूँ।
मैं सोने की चिड़िया कहलाता था,,
मैं दानीयो की पुण्य भूमि महान हूँ ।

मेरा इतिहास बहुत विस्तृत हैं,
कितने, कालो का भक्षक हैं।
मैने जन्मे देखो कितने,
मातृभूमि के रक्षक हैं।

मैं हरीशचंद्र की सत्यता की,
जीती जागती मिसाल हूँ।
मैं विक्रमादित्य के अदम्य साहस की,
एक गूढ़ परिभाषा हूँ।

मैं पोरस की वीरता हूँ,
मैं भीष्म की प्रतिज्ञा का वरदान हूँ।
मैं कर्म और युद्ध भूमि कि,
एक अनोखी मिसाल हूँ।

मैं मधुर राग गुन्जायमान ,
मैं सभ्यता का दानी हूँ।
मैं धरा हूँ निष्छलता की,
मैं ज्ञान,भक्ति और शक्ती का, एक अद्भूत संगम स्थान हूं।

मैं मौर्य वंश की शान हूँ,
मैं चाणक्य की प्रतिज्ञा का परिणाम हूँ।
मैं महाराणा प्रताप का शौर्य हूँ,
मैं शिवाजी की ललकार हूँ।

मैं परमहंस की भुमि हूँ,
मैं विवेकानंद का नाम हूँ।
मैं बुद्ध की अहिंसा हूँ,
मैं बोस की हिन्द फौज, महान हूँ।

मैं भगत सिंह की पुकार हूँ,
मैं आजाद की आजादी,
मैं बिस्मिल का इन्कलाब,
मैं तीन रंगो मे रंगा हुआ , वीरों का बलिदान हूँ।

मैं शहीदों और किसानों का,
एक कभी ना पुरा होने वाला कर्ज हूँ।
मैं अटल और कलाम जैसे ,
इंसानियत के पुजारियों का गर्व हूं।

मैं जात-पात मे बँट के रह रह गया,
राजनीती का मर्ज हूँ।
मैं टैगोर का भक्ति गीत ,
मैं ही जन-मन-गण हूं।

क्या कुछ मैने नही हैं देखा,
क्या कुछ मैने नही दिया हैं।
आज खड़ा हैं विश्व जहाँ पर,
सबकुछ मुझसे से छीना गया हैं।

ज्ञान भी मेरा, धन भी मेरा,
और हैं यह सम्मान भी मेरा।
मैं शिकार हूँ कुछ अपनो का,
कुछ अपनो के बैगैरत सपनो का।

फिर भी गर्व मैं करता खुदपर,
इतना अमर इतिहास हैं मेरा।
ना मुझसा था कोई , ना मुझसा कोई हो सकता,
मैं एक विस्तृत रहस्यों का स्थान हूँ,
मैं सिन्धु सभ्यता से जन्मा हिन्दुस्तान हूँ
मैं कर्म से खुदको गढने वाला,
भारत देश महान हूं।

हाँ मैं भारत हूँ................!!!!!

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

Friday, October 19, 2018

भक्ति या दिखावा

मोह, माया, का हैं साया,
बड़ा ही अद्भूत खेल रचाया।

जो देता हैं, उसी को देते,
देकर दानी कहलाते हैं।

नाम लिखा कर दिवारों पर,
अपनी ख्याति बडाते हैं।

देखो कैसी मनुष्य की सोच हो गई,
ईश्वर की बनाई कलाकृति मे कही ना कही तो खोट हो गई।

जिसने बनाया जग सारा,
उसको ही नीलाम कर दिया।

चंद रुपयो की खातिर देखो,
व्यक्तियों ने धर्म को ही बदनाम कर दिया।

कहाँ गई वो भक्ति आज जो,
शक्ती भक्ति की बतलाती थी।

सुना था  हमने परमहंस के हाथो से,
जगतजननी खाना भी खाती थी।

आज तो बस अपनी ख्याति को,
लोगों ने सरेआम कर दिया।

रख कर ईश्वर की  मूरत मन्दिर मे,
नीचे अपना नाम कर दिया।

जिसने दिया हैं सबकुछ तुमको,
उसको देकर एक तुच्छ भेंट ,

सरेआम ढिंढोरा पीट आये हैं,
ढोल और बाजो के साथ मे सारे शहर मे खुद का जुलुस निकलवा आये हैं।

क्या सच मे यही हैं भक्ति,
या माया का खेल निराला हैं।

देने वाले को ही लौटा कर के,
भिकारी जश्न मनाता हैं।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

#kuchaisehi #ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan

Thursday, October 18, 2018

मेरे विचार

पृथ्वी,जल,अग्नी,वायु और आकाश । इन पाँच तत्वों से बनता हैं, मनुष्य का शरीर जिसे हम स्थूल शरीर कहते हैं। पर इन सबसे अलग इस स्थूल शरीर मे एक सूक्ष्म शरीर भी वास करता हैं, जो तत्वों से नही बनता। जो बनता हैं, उस परमपिता परमेश्वर के अंश से, जो पवित्र हैं , जिसे हम आत्मा कहते हैं। पर हम लोग सिर्फ सोचते हैं, स्थूल शरीर के सुख के बारे मे, ना की उस पवित्र आत्मा के बारे में, और फिर हर बार दोष भी उस परमात्मा को ही देते हैं, कितने अजीब हैं ना हम लोग जो हमारे अन्दर विध्य्मान हैं, उसे हर जगह खोजते हैं, उसे दुखी भी करते हैं, और अंत मे दोष भी उसे ही देते हैं। हम हमारे कार्यो से उस आत्मा से उसका मोक्ष तक छिन लेते हैं, सिर्फ और सिर्फ हमारे इस स्थूल शरीर के सुख के लिये। इतने पापी ,कितने गिरे हुएँ हैं हम। और कितना महान हैं वो ईश्वर, जो हमारे इतने घृणित कृत्यों के बाद भी हमारा साथ नही छोड़ता, हमे वो सबकुछ देता हैं, जो हमारे लियें सही हैं।
जो कुछ उसने हमे दिया हैं, हम उसका अन्श्मात्र भी लौटा नही सकते। पर हम उसके अंश को उसमे विलीन करके कुछ तो उसे दे ही सकते हैं। हमारे आचरण, विचारों और कर्मो को उसके अनुरूप शुद्ध करके। बस यहीं होगी हमारी असल मायनो मे उस ईश्वर के प्रति शृद्धा और समर्पण की अभिव्यक्ति।

यह मेरे निजी विचार हैं, जो मैने अपने जीवन मे अनुभव कियें। मैं किसी व्यक्ति को गलत नही कह रहा, ना ही मेरे अन्दर इतना सामर्थ्य हैं कि मैं किसी को कुछ गलत कहुँ। अगर कुछ गलत शब्द प्रयुक्त हुएँ हो, जिससे किसी की आत्मा को कोई दुख हुआ हो तो मुझे क्षमा कर दिजियेगा।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

एक भुल!!! इन्सान

गीता रोती, कुरान रोती, रोता हैं आज ज्ञान,

धरती बांटि, मजहब को बाँटा, बांट दियें भगवान,

उसने तो इन्सान जने थे,कैसे हुएँ ये हैवान।

ज्ञान का होता अंत देखकर रोते हैं भगवान,

कैसी भूल करी यह उन्होनें , क्युं जन्मे इन्सान।

कलयुग अपने चरम को पहुँचा,

प्रलय निकट अब जान ।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

कहाँ ढुँढते फिरते उसको, वो तो बसा हैं कण कण में

मैं मन्दिर से मस्जिद तक फिर ढूंढ उसे ही आया हूं ।
दर दर भटका भूखा प्यासा, फिर ही ज्ञान ये पाया हूं।

ना मन्दिर मे,
ना मस्जिद मे,
ना ही किसी देवालय मे,

ना पत्थर की मूरत मे,
ना बसा हैं वो इन मजारो मे,

जो इन्सान को इंसा समझे,
रहता हैं वो,
उनके दिल के गलियारों मे।

बच्चों की चंचलता मे वो,
मात-पिता के चरणो मे,

मन की आँखो से देखो तो,
नजर तुम्हे आ जायेगा।

क्या पता वो ईश्वर तुमको,
खुद मे ही मिल जायेगा।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

सीता को पाने के लियें राम होना पड़ता हैं

सीता को पाने के लियें "राम" होना पड़ता हैं,
वचन का पक्का और धैर्यवान होना पड़ता हैं,
युहिं नही मिलती इन्सान को भगवान की उपाधि,
उसके लियें , निष्काम होना पड़ता हैं।

आयुष पंचोली

©ayush_tanharaahi

भक्ति राग

मेरी हर आस तुझसे है,
मेरा विश्वास तुझसे हैं।
मेरी सांसे, मेरी धड़कन,
मेरी आवाज तुझसे हैं।
मेरा कल, मेरा आज,
मेरा आगाज़ तुझसे हैं।
मेरी पूजा, मेरी मन्नत,
मेरी हर बात तुझ्से हैं।
तु जीवन , तु ही मृत्यु,
मेरा हर राज तुझसे हैं।

🕉 नमः शिवाय!!
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©ayush_tanharaahi
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तु ही भक्ति , तु ही शक्ति,
मुक्ति का हैं मार्ग भी तु।
जन्म, मृत्यु,आधार हैं जग की,
अंत हैं तु, आरम्भ भी तु।

🕉 दुर्गाये नमः!!
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©ayush_tanharaahi
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मेरे बाबा मेरा आज हो तुम,
मेरे जीवन के सरताज हो तुम।

तुमसे ही तो ये जीवन हैं पाया,
मेरी में हर श्वांस मे साथ हो तुम।

हो मेरे प्राणदाता, गुरु तुम,
मेरे सच के ज्ञाता हो तुम।

तुम ही मेरे मस्तक का टीका,
जितना सीखा तुम्हीं को हैं सीखा।

हो गलत कुछ तो क्षमा कर ही देना,
कालों  के हो स्वामी दयामय,
सबका बुरा समय हर लेना।

तुमको अर्पित ये जीवन किया हैं,
तुम समर्पण स्वीकार कर लेना।

"जय श्री महाँकाल"

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©ayush_tanharaahi
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मैं खुद को समर्पण करता हूं, गोविन्द तुम्हारे चरणों मे,
चाहो तो अपना लो मुझको, चाहो तो दर से ठुकरा दो,

छोड़ के आया माया सारी, बस तुझमे ही रम जाने को,
मोह से नाता तोड़ लिया, अब तुझको सबकुछ मान लिया,

मैने जीवन का हर पल , हर क्षण अब से तुम्हारे नाम किया,
मैं पूर्ण समर्पण करता हूं ,गोविन्द तुम्हारे चरणों मे........

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©ayush_tanharaahi
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मेरा आगाज़ अच्छा था, मेरा अन्जाम अच्छा हो,
मेरे कर्मों से हे ईश्वर किसी का दिल ना दुखता हो।

नही ख्वाईश हे जन्नत की, मुझे तु अपना दर दे देना,
तेरी भक्ति सा ना कुछ हे, ना फिर होगा,
मुझे कान्हा तु ऐसी ही किसी भक्ति का वर देना।

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©ayush_tanharaahi
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तान छेड़ दो मोहन ऐसी , हम भक्ति मे रम जायें,

छोड़ दिखावे माया के सब, तुझमे ध्यान लगाये।

बोल कही पर गुम हो जायें,सब राधे-राधे गायें ।

!!राधे-राधे!!
*********************राधे-राधे*********************

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©ayush_tanharaahi
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वो मज़ा कहाँ मधुशाला में, जो मज़ा हैं भक्ति हाला मे,

एक बार दो घूँट पीयो, ताऊम्र नशा सर चढ़ बोलेगा।

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©ayush_tanharaahi
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मैं, मैं से हूं या नही,
पता नही।
पर शिव से मैं हूं।

वही मेरा अहम ,
वही शिवोअहं ......

!!🕉 नमः शिवाय !!
!!हर हर महादेव!!

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©ayush_tanharaahi
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राधा की प्रीत को तो, हर कोई जानता हैं,
मीरा के वियोग को तो, संसार भी मानता हैं।
कान्हा का दर्द बोलो , क्या किसी ने हैं देखा,
राधा के बिना तो हैं श्याम भी अधूरा।

!!राधे-श्याम!!
एक आत्मा, दो नाम

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©ayush_tanharaahi
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श्याम मिलेंगे तुझमे भी, बस जीवन मे समर्पण होना चाहिये,
तन वृन्दावन जैसा कोमल, मन मथुरा सा पावन होना चाहिये,
कर्म द्वारका जैसे शुद्ध, भक्ति गोकुल सी निस्छल होना चाहिये।

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©ayush_tanharaahi
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कान्हा तेरी प्रीत ने क्या क्या नही बताया हैं,

प्रेम को सीखा, प्रेम को जाना,
प्रेम हैं क्या तुझसे पहचाना,

तु ही नैया, तु ही खीवैयां,
तु ही मेरा गीत हैं,

जीवन मे अब कुछ नही चहियें ,
साची तेरी प्रीत हैं,

अब कुछ नही मांगता तुझसे,
अब तो , तु ही मेरा मीत हैं।

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©ayush_tanharaahi
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आयुष पंचोली







कुछ ऐसे ही

सीता का वियोग क्या था , राम से पूछों,

अपने प्रिय का किसी और का हो जाने का दर्द राधा से पूछों,

भक्ति से उपजे प्रेम की परिभाषा को मीरा के बोल,
शबरी के बैर से पूछों,

होती हैं क्या मित्रता कोई कर्ण से पूछों,

ज्ञान से उपजे अहंकार का अन्त कोई रावण से पूछों,

भक्ति की शक्ती का अर्थ पवन पुत्र से पूछों,

मर्यादा की रक्षा कैसे होती हैं, रामायण तुमको बतलायेगी।

धर्म की रक्षा का ज्ञान महाभारत सिखलायेगी।

ईश्वर क्या हैं, गीता के शब्दों मे नजर आ जायेगा।

जीवन का आधार तुम्हे ग्रंथो मे ही मिल जायेगा।

आयुष पंचोली

©ayush_tanharaahi

नमन है मात आपको

"शिव की शक्ती हैं तु,
विष्णु की भक्ति हैं तु,
ब्रह्मा का हैं ज्ञान तु,
राम का हैं अभिमान तु,
तु धरा हैं, वसुधरा है,
तु नही तो कुछ भी नही,
तु समय की वो कला हैं,
तु सभ्य हैं, तु द्रव्य हैं,
तु हैं सहज, तु ही हैं पृथक,
जीवन का तु आधार है,
नदियाँ की बहती धार हैं,
सूरज का हैं तैज तु ही,
चन्द्र की शीतलता तु ही,
तु दुर्गा हैं, तु काली हैं,
तु माँ ,रक्षा करने वाली हैं,
व्यक्ति का पहला स्पर्श तु ही,
मातृत्व का हैं, सम्मान तु ही,
तु जीवन की कारक हैं,
तु मनुस्य का पहला गुरु,
तु ही उसकी उद्धारक हैं,
तु अचल-अटल ,तु भावयुक्त,
तु भावसमाहित , मुक्ति हैं,
तु शक्ती, तु ही भक्ति,
तु ही ऐ "नारी" "पृकृति" हैं,
क्युं डरती हैं , फिर इन शैतानो से,
नारी को नारी ना समझ,
एक सामान समझने वालों से,
कर विरोध अन्याय का,
जो होते हैं, तुझपर डगर डगर,
कर विरोध हर उस रिश्ते का,
हर उस निगाह का,
जिसमे नारी के लिये सम्मान ना हो,
करदे अंत उन रुडिवादी विचारो के समर्थको का,
जहां हुआ नही सम्मान नारी के अस्तित्व का,
बनजा तु चन्ड़िका, संहार कर दुष्टों का,
जब सही हैं तु , तो क्युं डरती हैं,
समाज के इन ठेकेदारो से,
और जो नही मानते शक्ति तेरी, वो हर एक कुरबानी तेरी ,
तो करदे बहिष्कार ऐसे समाज का,
घटित कर एक नया समाज,
आरम्भ कर एक नये युग का,
तु ही तो कर सकती हैं यें,
तु सिर्फ स्त्री नही , तु पृकृति हैं।
हाँ नारी तु पुज्यनिय हैं,
सम्माननीय हैं,
तु पृकृति हैं........!!!!।"
✍✍✍✍✍✍❤❤❤

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

मौन

"मौन सृष्टि का कारक है,
मौन शान्ति का धारक हैं।

मौन अंत का परिचायक हैं,
मौन आरम्भ का सूचक हैं।

मौन के पीछे प्रलय छुपा हैं,
मौन ज्ञान उद्धारक हैं।

मौन से सबकुछ , मौन मे सबकुछ,
मौन त्वरित संहारक हैं ।

मौन हैं कारक, मौन हैं कर्ता,
मौन ही नाद ओंकार का।

मौन ही जीवन, मौन मरण हैं,
मौंन आत्म शुद्धि उदहारण है।

मौन मुक्ति हैं, मौन मोक्ष हैं,
मौन तत्व ज्ञान का चक्षु हैं ।

मौन से धोखा मत खाना,
मौन बहुत ही घातक हैं,
मौन,मौन से समझ सकोगे,
मौन मृत्यु परिचायक है...............

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

भक्त की आस

बहुत कर लिया ऐतबार मोहब्बत पर,
अब जिन्दगी मे नया मोड चाहता हूँ।

हे मोहन अब तुम्ही सम्भालो मुझे,
मैं तुम्हारी भक्ति के प्रेम मे झुमना चाहता हूं।

वही भक्ति जिसकी दीवानी मीरा हुई,
वही भक्ति जो हरिदास की कहानी हुई।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

राधे-राधे

कोई तान रूहानी सुना जा,

हे! मोहन मुरली बजा जा।

खूब जगत को जाना,

अब तो हैं, तुझको पाना।

रेदास सा मुझमे समा जा,

हे! मोहन अब तो आजा।

!!राधे राधे!!

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

शिवोअहं

ज्ञान वहीं, सम्मान वहीं,
सत्य वही, सुन्दर भी वहीं।

अहम नही, कुछ वहम नही,
शिवोअहं, सबकुछ हैं वहीं।

वो काल हैं, विकराल हैं,
वो ही तो "महाकाल" हैं।

©ayush_tanharaahi
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अहम- मैं हूँ, और यह सबसे बड़ा वहम हैं।
शिवोअहं- शिव से मैं हूँ। (यही जीवन का सत्य हैं)

©ayush_tanharaahi

प्रेम

शिव का सती के प्रति,
राम का सीता के प्रति,
कृष्ण का राधा के प्रति,
श्रवण का अपने जन्मदाता के प्रति,
नन्दि का अपने आराध्य के प्रति,
एकलव्य का अपने गुरु के प्रति,
हनुमान का अपने इष्ट के प्रति,
भगतसिंह ,सुखदेव ,राजगुरु का
भारत माता के प्रति,
विवेकानन्द, कलाम का अपने
ज्ञान के प्रति,

जो समर्पण और आदर का भाव था वही प्रेम था।
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प्रेम दिखावा नही हैं, ना ही दो जिस्मों का बन्धन हैं । प्रेम कर्त्तव्य, समर्पण, आदर और जीवन की अभिव्यक्ति का नाम हैं। प्रेम तो किसी को भी किसी से भी हो सकता हैं, उसकी कोई लिखित परिभाषा नही हैं। ना ही कोई सजीव, निर्जीव का भेद हैं प्रेम मे।

किसी को ज्ञान से प्रेम हैं, किसी को मान से प्रेम हैं।
किसी को सजीव से, तो किसी को निर्जीव से प्रेम हैं।
किसी को अपने इष्ट से, तो किसी को अपने मित्र से प्रेम हैं।
किसी को तन से, तो किसी को वतन से प्रेम हैं।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

कुछ ऐसे ही

गौरी सुरत, काली सीरत,
क्या अजीब ये माया हैं।
जिसको दी तन की सुन्दरता,
शर्म हयाँ उससे छिनी।

जिनके मन सुन्दर होते हैं,
वो कहाँ किसी को भाते हैं।
सुन्दर चेहरे , ही लोगो को
अपनी और लुभाते हैं।

क्या अजीब माया हैं तेरी,
तु कर्ता , तु कारक हैं।
हम कठपुतली तेरे हाथ की,
तु जीवन का संचालक हैं।

आयुष पंचोली

©ayush_tanharaahi

शिवोअहं

शिव ही मेरा मान हैं, शिव ही गुणगान हैं।
शिव मेरे जीवन के दाता, शिव ही स्वाभिमान हैं।
शिव से ही तो मैं हूं, शिव से मेरा सम्मान हैं।
शिव बिना मैं कुछ भी नही, शिव मेरा अभिमान हैं।

!!जय श्री महांकाल!!
!!🕉 नमः शिवाय!!

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

माँ

जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं। मैं नही कहता, ग्रंथो मे लिखा हैं।
और सच ही लिखा हैं। कौन जाने मरने के बाद क्या होता हैं, स्वर्ग होता भी हैं या नही, हैं कोई ऐसा जिसने देखा हो स्वर्ग , बस सुना ही हैं सबने। तो जो स्वर्ग से भी बढ़कर आपके पास हैं, आपके साथ हैं, उसे ही क्यों नही पूजते। स्वर्ग जीते जी ही मिल जायेगा आपको, जननी के चरणो मे , जन्मभूमि की गोद मे। वही सुख, वही एहसास ,वही सबकुछ जो सिर्फ हमने सुना हैं, यहाँ अनुभव हो जायेगा।

आयुष पंचोली

महादेव

मैं लहरों का शोर नही, मैं स्मशान की खामोशी हूं।
मैं मौन का सूचक हूं, मैं अघोर सन्यासी हूं।
मैं बाघम्बर, त्रिशूल धारि, त्रिनेत्र वनवासी हूं।
मैं मुण्ड्माल धारण कर बैठा, मैं आदियोगी अविनाशी हूं।
मैं कला की पृष्ठभूमि, मैं पृकृति का स्वामी हूं।
मैं कालों का काल, मैं समय चक्र द्रुत्गामी हूं।
मैं त्वरित संहारक, मैं मोक्ष मुक्ति का दानी हूं।
मैं समाधि की परिभाषा, मैं वेदों की गायि वाणी हूं।
मैं अंत का कारक ,आरम्भ का कर्ता विज्ञानी हूं।
मैं सृष्टि का मूलाधार, मैं सर्वज्ञ ज्ञानी हूं।
मैं व्यक्ति की कुण्डलिनी, ब्रह्माण्ड की गति सुहानी हूं।
मैं तत्वों का पोषक, मैं भाव भक्ति का मानी हूं।
मान,सम्मान,अपमान,इन सबसे परे
मैं सबका कल्याणी हूं।
शव नही पर शव सा ही, शिव हूँ मैं,
देव नही हूं महादेव हूं मैं।


आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

महांकाल

मै छोटा सा एक मानव हूं,
तेरी सल्तनत का एक प्यादा हूं।
तू रब मेरा, तू सब मेरा,
मैं ना कुछ था, ना मैं कुछ हूं,
तेरी दया से ही सबकुछ हूं।
तेरे इतने, एहसान हैं मुझपर,
मुझे पता हैं,तू मेरे साथ हैं हरपल।
तू दाता हैं, तू हैं विधाता,
तू हैं बनाता,तू ही गिराता।
तुने मुझको ,इन्सान बनाया,
सच्चाई का मार्ग दिखाया।
तेरा कर्ज ना, मैं दे पाऊँगा,
पर मैं अपना वचन निभाऊँगा।
ऐ मेरे मालिक तू साथ रहेगा,
तेरा मुझपर हाथ रहेगा,
तो क्या जमाना,रोकेगा मुझको,
एक नई इबारत मैं लिख जाऊंगा।
तू मेरी हस्ती , तू मेरी शक्ती,
तू भक्ति हैं, तू हैं मेरी मुक्ति।
तुझको पता हैं सपना मेरा,
तू ही तो हैं एक अपना मेरा।
तू कहदे जो, मैं वो कर जाऊँगा,
इतिहास नया, मैं लिख जाऊंगा।

!!जय श्री महांकाल!!
!!🕉 नमः शिवाय!!

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

साधक और साधना

हर वो व्यक्ति जो अपना कार्य पूर्ण निष्टा, भक्ति, समर्पण,धैर्य और श्रद्धा के साथ करता हैं, वो साधक हैं। और उसका कार्य ही उसकी साधना।

कर्म,धर्म,नृत्य,ज्ञान, कई रूप हैं साधना के और उतने ही साधक हैं। किसने साधना को किस रूप मे साधा और उससे क्या पाया,यह महत्व नही रखता। महत्व रखता हैं, उस व्यक्ति की उस साधना को प्राप्त करने के प्रति की गई श्रद्धा, समर्पण, धैर्य और निष्टा की वो अभिव्यक्ति, जो उसने उसे प्राप्त करने मे लगाई।

साधना का मूल मन्त्र हैं , खुद को साधना।
जिस व्यक्ति ने खुद को साध लिया, उसके लियें फिर कुछ और साधना बहुत ही सरल हो जाता हैं।
साधना अर्थात किसी कार्य पर खुद का नियन्त्रण प्राप्त करना, उसे अपने अनुसार कर लेना। और जिसका मन और शरीर उसके अधीन उसके अनुसार हो गये उसने खुद को साध लिया।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

एक सत्य

जिस दिन भारत का युवा अंग्रेजी का दामन छोड़, संस्कृत और हिन्दी को अपना लेगा और अपना रुख विज्ञान के साथ साथ वेदों की तरफ मोड देगा ना, उस दिन के बाद आने वाले 10 वर्षो मे भारत विश्वगुरु, और महाशक्ति बन जायेगा।

जो विज्ञान आज प्रतिपादित कर रहा हैं, वो यहां पहले ही तर्कों के साथ आजमाया और बनाया जा चुका हैं।

Rutherford का atomic model हो। या फिर Newton  के laws of motion.
Darwin की theory of evolution हो। या फिर Einstein की theory of relativity.

सबकुछ यहीं का हैं, यहीं से हैं। हमारे ग्रंथो मे हर राज दफन हैं, और हम दुसरों के गुलाम हुएँ जा रहें हैं।

सच कहते हैं, दियाँ तले ही अन्धेरा होता हैं।

आयुष पंचोली

©ayush_tanharaahi