Friday, August 2, 2019

क्या नरक और स्वर्ग सच मे होते हैं, या यह सिर्फ कोरी कल्पना मात्र हैं...!?


क्या नरक और स्वर्ग सच मे होते हैं, या यह सिर्फ कोरी कल्पना मात्र हैं..!?

यह प्रश्न भी उतनी ही गहन सोच का विषय हैं , जितना की आत्मा। अगर आप मानते हैं की आत्मा होती हैं, तो यह भी आपको मानना पड़ेगा की नरक और स्वर्ग भी होते हैं। पर कहां होते हैं, यह विषय शोध का हैं।
क्योकी अगर बात की जाये गीता के ज्ञान की तो आत्मा अजर अमर हैं, और वह एक शरीर त्यागकर दुसरा गृहण करती हैं। तो स्वर्ग और नरक का सवाल ही कहां आता हैं। इस हिसाब से गरूड पुराण मे वर्णित सभी नरक यात्नाये, और 36 नरक सभी गलत हैं। और अगर गरुड़ पुराण मे वर्णित जानकारी सत्य हैं, तो गीता का ज्ञान झुठा साबित हो जायेगा।
पर ऐसा नही हैं, गरुड़ मे वर्णित नर्क यात्नायें और नरक का वर्णन भी उतना ही सत्य हैं जितना गीता का ज्ञान। बस इसे थोड़ा समझने की जरुरत हैं। अपने अनुसार, ना की उन लोगो से जिन्होने ज्ञान को इतना दूषित कर दिया हैं, की हम तर्को और तथ्यो मे उलझकर यह भी नही समझ पाते की सत्य क्या हैं।
मेरे अनुसार तो स्वर्ग और नरक यहीं हैं।
स्वर्ग हैं वहां जहां, व्यक्ति हर पल खुशी और आनंद का अनुभव कर सके, और यह आनन्द व्यक्ति उसी समय अनुभव कर सकता हैं, जब उसकी आत्मा प्रफुल्लित हो, और उसके भीतर एक अलौकिक खुशी का एहसास हो। जिसके लिये धन, दौलत , मान-सम्मान नही। मन की शान्ती की जरुरत होती हैं। हर चीज को समभाव से देखने की जरुरत होती हैं, और अन्त करण की शुद्धि की जरुरत होती हैं। अगर ऐसा व्यक्ति अपने जीवन को बना पाया तो, उसे हर पल एक आत्मिक खुशी की अनुभूति होगी वह खुशी ही उसे अपने आप मे स्वर्ग का एहसास कराती हैं।
इसके ठीक विपरीत अगर बात करें गर्द पुराण मे वर्णित पापो और उनके लिये मिलने वाले दण्ड की तो, यही कहां जा सकता हैं, की इस सम्पुर्ण संसार मे ऐसा कोई नही जिसे नरक नही जाना पड़ेगा । और वह नरक कही और नही हैं , वह नरक वही गर्भ हैं, जिसमे जीव नो महीने की यातना काटते हुएँ, धीरे धीरे आकार लेता हैं।
अगर किसी व्यक्ति ने गरुड़ पुराण का अध्ययन किया हैं तो जानकारी उसमे दी गई हैं, की मरने के बाद आत्मा को यमदूत यमराज के समक्ष ले जाते है, जहां उनके कर्मो के अनुसार उनको किस नरक मे भेजना हैं, और उनकी सजा की अवधी क्या होगी यह तय किया जाता हैं, उसके बाद यमदूत उस आत्मा को नरक के लिये ले जाते हैं। अब जैसा वर्णन गरुड़ पुराण मे नरक का मिलता हैं की, नरक का द्वार खुलते ही एक गहरी अंधेरी गुफ़ा हैं, जिसमे प्रवेश करते ही अजीब सी गन्ध आने लगती हैं, आगे चलकर खून की नदी हैं, जिसमे विभिन्न प्रकार के जीव हैं जो वहां आने वाले नये जीव को तरह तरह को यात्नाये देते हैं। उसके बाद मल मूत्र से भरा कुआ हैं, जिसमे जीव को धकेल दिया जाता हैं, और फ़िर उस कुएँ से व्यक्ति नरक मे प्रवेश करता हैं जहाँ उसे कई प्रकार की यात्नाये दी जाती हैं। जैसे गर्म खोलते हुएँ पानी और तेल मे तलना, ठंडी बर्फ की चट्टानो पर रखना, किलो से भेदना, लगतार उसे लुडकाना, और भी बहुत सी हैं, जैसे कीड़ों से कटाना, अन्न जल नही देना, अनगीनत यात्नाये। और जब उसका नरक की सजाका समय पुर्ण हो जाता हैं, उसे मुक्त कर दिया जाता हैं, या वापस मृत्यूलोक मे जन्म दिया जाता हैं।
अब अगर इस बात पर गौर करे तो, इस लोक मे 84 लाख जीवो की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमे से हम तो कुछ को ही जानते हैं। पर यह बात भी हैं, मनुष्य हो या कोई और गर्भ योनि और गुदा के मध्य ही उपस्थित होता हैं, जहां हमेशा मल-मूत्र ही भरा रहता हैं। साथ ही साथ गर्भ तक का मार्ग भी ठीक वैसा ही जैसा गरुड़ पुराण मे वर्णित नरक का मार्ग हैं। और गर्भ धारण के बाद एक गर्भ धारण करने वाली माँ जो भी गृहण करती उसी मे वह गर्भ मे पल रहा जीव दिन रात रहता हैं। अब एक जीव जिसने आकारएन शुरु किया हैं, वह कैसे इस परिस्थिति मे रहता होगा। साथ ही साथ गर्भ धारण करने वाली माँ के हर कार्य का सीधा असर उस गर्भस्थ जीव पर भी पड़ता हैं। अगर देखा जाये तो उसके साथ वह सबकुछ वहाँ होता हैं, जो गरुड़ पुराण मे वर्णित नरक की यातनाओ मे कहां गया हैं। अब किसे किस प्रकार की यातना भोगनी हैं, यह गर्भ किसका उसपर निर्धारित करता हैं।
अब अगर देखा जाये तो इसका अन्दाजा इस बात से भी लगाया जा सकता हैं, की मनुष्य के गर्भ से उतपन्न सन्तान जन्म के बाद लगभग 6 मास तक अपनी आंखें स्थिर नही कर पाती, साथ ही साथ लगभग 2 से 3 वर्ष वह बोल भी नही पाती। और एक बात और हैं, गहरी नींद मे कुछ मास का शिशु, कुछ डरा सहमा सा ही रहता हैं। जब उसकी गर्भ मे मिली यात्नाओ की स्मृतियाँ उसके मस्तिष्क से धुमिल होने लगती हैं, तब उसकी आँखे स्थिर होने लगती हैं। और जब वह पुराना सबकुछ भूल चुका होता हैं, तब वह यहां स्पर्श को समझने लगता हैं।
शायद इसलिये स्त्री को माया भी कहां जाता हैं, क्योकी वह एक ऐसा संसार अपने भीतर समाहित करके रखती हैं, जिसे शास्त्रो मे कर्म फल प्राप्ती का स्थान कहाँ गया हैं। और सही भी तो हैं, हर कोई अपने जीवन काल मे सबसे ज्यादा प्रताड़ित भी प्रकृती को ही करता हैं, चाहे जिस रूप मे भी देखलो। तो उसे सजा भी प्रकृती के अन्दर ही मिलती हैं। प्रकृती से आशय यहां स्त्री से ही हैं, क्योकी हो ना हो हैं तो वह भी प्रकृती का रूप।
इसका कोई वैज्ञानिक आधार तो मेरे पास नही है, ना ही मैं किसी से इसे मानने का आग्रह कर रहा हूँ । यह मेरे निजी विचार हैं। किसी को किसी भी प्रकार से कोई बात बुरी लगी हो तो क्षमा किजियेगा।

©आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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