Friday, August 2, 2019

वात्सल्य एक अनुभूति

वात्सल्य आखिर क्या हैं, क्या माँ का प्रेम ही वात्सल्य हैं?

वात्सल्य जैसा की नाम से ही समझ आ रहा हैं, ऐसा कुछ एहसास जो शरीर और मन को रोमांचित कर दे। वात्सल्य को सीधे तौर पर माँ के प्रेम से जोड़ा जाता हैं, एक माँ और बच्चे का वही प्रेम जो इस दुनिया मे सबसे पवित्र हैं। वही प्यारा सा माँ की गोद मे जन्नत का एहसास, वो प्यारा आलिंगन जो बताता हैं, मैं हूं तेरे साथ चाहे दुनिया हो ना हो। वो प्यारा सा माथे पर मिलने वाला चुम्बन जिसकी अपनी ही अलग महत्ता हैं, क्या दुनिया भर की बलायें एक इस चुम्बन से उतर जाती हैं। जब इतना प्रेम ईश्वर का दूसरा रूप देता हैं, जिसे प्रथम गुरु भी कहते हैं, तो आखिर क्यो नही रोमांचित होगा यह शरीर और यह जीवन। तो सही तो हैं वात्सल्य अर्थात् माँ का प्रेम।
पर अगर इसे किसी और नजरिये से देखे तो हर वह एहसास जो आपको आपकी माँ के प्रेम का एहसास करायें वही वात्सल्य हैं। कहने को तो यक एक रस हैं, मगर यकिन मानिये नौ रसों मे जो सुख यह रस देता हैं, वह कोई और रस नही दे सकता। यहां तक की भक्ति रस भी नही। क्योकी इस वात्सल्य के लिये तो ईश्वर भी अवतार लेते हैं। हाँ वात्सल्य का सही अर्थ तो यहीं होना चाहिये की हर वह, एहसास वह हर वह अनुभूति जो आपको अपनी माँ के पास होने की अनुभूति करायें, उसका वही शुष्क एहसास करायें वहीं जगह वहीं शख्स आपकी माता का दूसरा रूप हैं। अब वह कोई भी शख्स हो सकता हैं, बस नजरिया आपका हैं, आप उसे किस रूप मे देखते हो।
अगर देखा जायें तो एक सैनिक के लिये वह रेतीली भूमि भी उसकी माता के वात्सल्य का एहसास उसे कराती हैं। जो किसी और के लिये तपिश का पर्याय हो जाती हैं।
वैसे ही दुनिया मे ऐसे कितने ही शख्स हैं, जिन्होने अपनी माँ को कभी देखा नही, मगर जहां भी उन्हे वो प्रेम मिला और उन्हे अपनी माँ की अनुभूति हुई वही वात्सल्य आ गया।
पता हैं दुनिया मे ऐसा कोई शक्स नही जिसे प्रकृति की गोद मे आनंद नही आता हो, इसका कारण सिर्फ एक हैं, वह भी माँ हैं, किसी एक की नही सकल संसार की, कितना प्रेम करती हैं वो अपनी सन्तानो से। कितना कुछ दिया हैं उसने, एयर जीवन पर्यन्त देती ही रहती हैं। मगर हम लोग पता नही कौन हैं, इन्सान तो हो नही सकते, क्योकी उस देने वाली माँ की कौनसी ख्वाईश का ख्याल रखा हा8न हमने, छलनी कर दिया हैं उसे। उजाड़ बना दिया हैं। कितना प्रताडित कर दिया हैं की उसके आने वाले सभी मौसम बदल गये हैं। उसका तापमान इतना ज्यादा बड़ा दिया हैं की हम, खुद उसे सहन नही कर पा रहे, तो उसपर क्या बीतती होगी।
अपनी माँ का वात्सल्य तो हमने देखा, पर क्या उस माँ का देखा जिसने हमे इतना कुछ दिया। जब किसी सर उदास हुएँ, जब कहीं कुछ समझ नही आया, तब जाकर जिसकी गोद का सहारा लिया, उसे ही प्रताड़ित करते हैं।
बस एक बार सोचना जरुर क्या, अगर हम हमे इतना, प्यार इतना वात्सल्य देने वाली माँ को जरा सी तकलिफ़ मे नही देख सकते। तो फिर प्रकृति माँ को क्यो। वह तो सबकी माता हैं ना।
कुछ गलत कहाँ हो या किसी को कुछ गलत लगा हो तो क्षमा किजियेगा।

©आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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