अगर बात की जाये पूर्णता की , तो इतिहास उठाकर देखलो कभी कोई पुर्ण हुआ ही नही। ना ही कोई देव, ना दानव , ना ही कोई मनुष्य। पुर्ण सिर्फ एक हैं, जिसे देव, दानव , मनुष्य सभी प्यारे हैं। सभी उनके हैं,वो हैं “महादेव”।
अनगिनत नामो से जाने जाते हैं वो। हर सकारात्मक, हर नकारात्मक स्थान मे वो ही विराजते हैं। हर तत्व उन्ही से हैं, उन्ही का हैं। अगर जीवन मे कुछ पाना हैं, तो “शिवत्व” की और अग्रसर हो जाओ। पूर्णता को प्राप्त तो नही कर सकोगे, मगर उसके बाद जीवन मे अपूर्णता का कोई स्थान नही रह जायेगा।
“शिवत्व” अर्थात् अपने आप को ऐसा बना लेना, जो हर भाव मे एक समान ही रहें।
जिसे किसी की बातों से कोई फ़र्क ना पड़े, और जो अन्याय के खिलाफ हर पल लड़े ।
पन्च्दूतो के मायाजाल से जो मुक्त हो।
परोपकार ही जिसके जीवन का मूल हो।
अपने वचन से जो ना डिगमगाये।
खुशी और गम के हर चक्रव्यूह को जो भेद जायें।
दुनिया होती हैं सबकी,जीती हैं सबके लियें,
मगर जो अपने आराध्य का हो, सदा के लिये उनका ही हो जायें।
सर्वस्व जिसका हैं, मगर फिर भी वह शुन्य सा जीवन बितायें।
बस वही हैं, जो शव से शिव हो जायें।
वही हैं जो “शिवत्व” का असल ज्ञान दे पायें।
मुश्किल होता हैं, मगर असंभव नही हैं,
बस एक कदम खुद के अहं को त्याग,
“शिवोअहं” की और तो बढ़ाये।
क्या पता खोज मे हो जिन सवालों के तुम,
उनका हर राज तुम्हें यहीं मिल जायें।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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