मैं मृत्यू का शौक का विषय नही मानता। मेरे अनुसार मृत्यू एक उत्सव हैं।
हाँ चाहता हूं मैं,
मृत्यू मेरी किसी उत्सव से कम ना हो।
जब त्यागे आत्मा यह देह मेरी,
किसी की आँखें आंसुओ से नम ना हो।
हो खुशी इस बात की,
मिल रहा हैं नया घर कोई ईश्वर के उस अंश को,
इतने सालो तक सहा जिसने,
मेरी इस देह से हो रहे पापों के दंश को।
मैं करता रहा तिरस्कार ,
उसकी हर एक पुकार का।
फ़िर भी वह देता रहा साथ,
मेरे हर एक घृणित विचार का।
जब मुक्त हो वह आत्मा मेरी इस देह से,
हो उत्सव नया कुछ यूँ की वह भी खुशी से झूमले।
जीवन भर के पापों का छोड के वो दामन,
एक नया वस्त्र जब वो ओड़ले।
हो जब वह क्षण मेरी इस मायावी दुनिया से विदाई का,
मोह के जालों से हो मुक्त, अपनी सत्यता के साथ लेने को अंगड़ाई का।
ऐ मेरे यारो उसे उत्सव की तरह मनाना तुम,
खुशी खुशी विदा करना मुझे, अपनी पलकों को ना भिगाना तुम।
जब जल जाये यह पापी देह मेरी,
तब ढोल नगाड़े बजाना तुम।
लेकर अस्थियाँ मेरी,
भोग शिवा को लगाना तुम।
फ़िर उड़ा देना उसे दूर पहाड़ी पर जाकर कही हवाओं मे,
दूर से ही देखकर मुझे फ़िर मुस्कुराना तुम।
करना विदाई मेरी किसी उत्सव की तरह,
मेरी इतनी सी ख्वाईश निभाना तुम।
याद रखना दोस्तों मृत्यु शौक नही होती,
मृत्यु ना ही जीवन का अन्त हैं।
मृत्यु तो एक उत्सव हैं,
नये जीवन का आरम्भ हैं।
इसी सोच को धारण करके,
मुझे विदा कर आन तुम।
हो मृत्यु जब भी मेरी,
उसे किसी उत्सव की तरह मनाना तुम…..!!!!!
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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