ब्राह्मण क्या हैं? क्या ब्राह्मण कोई जाती हैं, या वर्ण हैं, या कुछ और हैं। और हैं तो क्या हैं, जो उसे शास्त्रो मे इतना ऊंचा स्थान दिया गया..!!!
ब्राह्मण जिसका अर्थ सीधे ब्रम्ह से जुडा हैं। अगर देखा जाये तो ब्राह्मण अर्थात् “ब्रह्म जानाती, इति ब्राह्मण” ऐसा कहां गया हैं, मतलब “जो ब्रम्ह को जान चुका हैं, वह ब्राह्मण हैं। जिसे ब्रह्म का ज्ञान, तत्व का ज्ञान हो चुका हैं वही ब्राह्मण हैं।
पर क्या सच मे ऐसा हैं। जब सृष्टि की रचना हुई, तब सबसे पहले सप्तऋषियो को जन्म दिया गया। जिन्होने कठोर तपस्या से ब्रम्ह ज्ञान को जाना, तब जाके वह ब्राह्मण कहलाये गये। और फिर उन्होने ही, गृहस्थ जीवन की शुरुवात कर, संसार को गृहस्थ आश्रम का पाठ पढ़ाया। अब अगर देखा जायें, तो जो गौत्र हम लगाते हैं, वह सभी इन सप्तऋषियो के नाम से ही हैं । और अगर कुल मे जन्म लेने से ही किसीका वर्ण निर्धारित किया जाये तो इस हिसाब से तो दुनिया का हर एक इन्सान ही ब्राह्मण हो जायेगा। क्योकी इन्सान की उत्पत्ति तो इन 7 सप्तऋषियों के कुल मे ही कही ना कही होगी। उसका मूल उसकी जड़ तो यही हैं ना।
मगर ना ऐसा कुछ हैं, ना ही ऐसा कुछ हो सकता हैं। क्योकी अगर कुल मे उतपन्न होना ही सबकुछ होता तो शायद, वर्ण व्यवस्था की जरुरत समाज को नही पड़ती।
अब अगर इसके बाद भी समाज चार वर्णो मे विभाजित हुआ, तो भी कुल को प्रधानता किसी वेद, किसी शास्त्र ने कभी प्रदान नही करी । हर चीज कर्म आधारित ही रखी गई । और कर्मो का विभाजन और चयन व्यक्ति के ऊपर था उसे कौनसा कर्म करना हैं। सबने अपने अनुसार अपने कर्म, निर्धारित किये। और उन्हे करने लगे।
और यही कर्म उनकी पहचान बन गये। जो बाद मे जातियों मे बँट गये।
मगर इन कर्मो से कभी वर्ण निर्धारण हो ही नही सकता था। क्योकी अगर बात कर्मो के अनुसार वर्ण निर्धारण की होती तो, कर्म कोई भी हो उसे तो सभी कर सकते हैं। यहां जो बात निर्धारण की आई, तो उसका सीधा तात्पर्य, सिर्फ इस बात से था की,” ब्राह्मण सिर्फ और सिर्फ वही हो सकता हैं, जिसे ब्रम्ह का ज्ञान हो, फिर चाहे वह किसी भी जाती का हो वह ब्राह्मण ही कहलायेग। ठीक इसी प्रकार युद्ध और राजनीती का ज्ञाता क्षत्रिय, व्यापार और यात्रा का ज्ञाता वैश्य, और सेवा कर्म का ज्ञाता शूद्र कहलायेगा।
जिसे पुर्ण रूप से हमारे समक्ष कभी प्रस्तुत किया ही नही गया। और इतिहासकारों ने सत्य को अपने अनुसार तोड़-मरोडकर नई नई किताबे लिखकर हमारे समक्ष प्रस्तुत किया, जिसे किसी ने जानना नही चाहा । और एक अंधेरे गर्त मे भेंड चाल की भाती चलते चले गये। जिसका परिणाम यह हुआ की समाज कई टुकड़ों मे बँट गया। और अब समस्या यह हैं, की अब इसे समझाना भी चाहो तो कोई समझेगा नही।
बस अपने आप पर गर्व सब कर रहे हैं, मगर शायद यह कोई नही समझ रहा हम, जिस जात को अपने सर पर उठाकर, जिस वर्ण का तमगा लगाकर घूम रहे हैं, वह हैं क्या। उसका मूल क्या हैं। और क्या हम सच मे उससे ही जुड़े हैं, या कुछ और सत्य भी हैं।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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