कभी किसी ने सोचा हैं, सावन का महिना इतना अलौकिक क्यो होता हैं। क्या कारण हैं, की इस समय हर कौई आनंद मे ही झूमता हैं। मैने कोशिश की तो मुझे तो एक ही जवाब मिला, “यह प्रकृति(शक्ती) का प्रेम हैं, अपने प्रियतम शिव के लिये”। क्योकी प्रकृती को जितना शिव ने प्रेम किया उतना ही प्रक्रति ने शिव को। अब जब अपने प्रिय का आगमन होता हैं, तो कोई प्रियतमा कैसे सजती हैं, ठीक उसी प्रकार पृकृति अपनी मधुर छटा से सावन को मनोहर बना देती हैं। की उसके प्रियतम का स्वागत अलौकिक हो।
ऐसा की हर कोई आनन्द मे ही झूमता रहता हैं। कोई भक्ति के आनंद मे, तो कोई पृकृति के मनोहारी रूप को देखकर। अब इसे आप प्रेम का अलौकिक और दिव्य दर्शन नही कहेंगे तो क्या कहेंगे।
सावन का यह मास,
सिखाता अद्भूत हमको बात।
दिखाता प्रेम का अद्भूत रूप,
कराता प्रेम की दिव्यता का एहसास।
जगह जगह छाई हरयाली,
प्रकृती ने ओढ़ि क्या छटा निराली।
कर रही आगमन अपने प्रियतम का कैसे,
कर दिया न्योछावर अपना सबकुछ जैसे।
भक्ति से गुंजित होता धरा का हर किनारा,
नमः शिवाय से गुंजित हैं देखो कैसे नभ सारा।
क्या इसे दिव्य, अलौकिक प्रेम का ,
प्रत्यक्ष दर्शन नही कहोगे।
कैसे अपने प्रिय के आगमन पर,
प्रियतमा ने सजा दिया यह जग सारा ।
सब आनन्द मे झूम रहे हैं,
प्रकृती का मनोहारी रूप देख रहे हैं।
सबका मन बस यही सोचता,
क्यो हर मास मे नही ये होता।
पर इतना सोचो तुम यारो,
प्रक्रति क्यो साल मे दो बार ही हर्षित होती हैं?
एक समय बसंत का होता,
एक समय सावन का हैं।
एक मे आती शिवरात्री,
एक प्रकृती के प्रियतम के आगमन का हैं।
शायद यही हैं प्रेम अलौकिक,
यही दिव्य प्रेम का दर्शन हैं।
हो सकता हैं, यह सिर्फ कल्पना हो मेरी,
पर मेरा मन इस दिव्य दर्शन से आनंदित हो उठता हैं।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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