Friday, August 2, 2019

सत्य क्या हैं...!!!

क्या हम सच जानते हैं,
क्या सच वही हैं, जो हमने पढ़ा, देखा या सुना..?

मेरे अनुसार तो शायद नही। क्योंकि सच की अपनी परिभाषा ही अलग हैं। उसकी वास्तविकता ही अलग हैं। अगर कोई कहता हैं, की उसे सर्वस्व ज्ञात हो गया हैं, वह ईश्वर को जान गया हैं। तो आप उसे गलत नही कह सकते, क्योकी उसने वह तो जान लिया हैं, जो उसको जानना था। मगर उसके अलावा जो हैं, क्या वो उसे जान पाया हैं।
हम लोग अगर कुछ सोचते हैं, तो हमारे समक्ष प्रस्तुत होने वाले किरदार भी उसी सोच से उपजते हैं। ठीक ऐसा ही सच का और ईश्वर का भी हैं। आपने जिस रूप मे सच को और ईश्वर को समझना चाहा, जिस रूप मे उनसे कुछ पाना चाहा, उस रूप मे ही आपको उनका सच, ज्ञात होगा।
मगर उस सच का महत्व सिर्फ उतना ही हैं, की आपने उसे अपने अनुसार जाना हैं। कोई और उसे अपने अनुसार जानेगा । तो उसका सत्य आपके सत्य से भिन्न ही होगा। और यही सत्य हैं की, सत्य कुछ भी नही हैं।
बस आपने जो सोचा, जो कल्पना की, जो देखा, सुना, पढ़ा और जो आपके दिमाग ने समझा, उसका एक नाट्कीय रूप जो आपके समक्ष चल रहा हैं, आपको महसूस हो रहा हैं, आप उसे ही सच मान लेते हैं।
मगर वास्तविकता मे ऐसा कुछ नही होता, क्योकी सत्य को समझ पाना, और सत्य को जान पाना तब ही सम्भव हो पाता हैं, जब व्यक्ति स्वयं के सत्य से भलीभांती परिचित हो।
अगर कोई खुद का ही सत्य, नही जान सकता तो वो कैसे कोई और सत्य जान पायेगा।
ईश्वर हैं यह सत्य हैं।
पर क्या ईश्वर वही हैं, जिसकी हमने, कल्पना की हैं। या जो हमने, देखा, सुना या पढ़ा हैं।
ठीक ऐसे ही मृत्यु भी एक सत्य हैं।
पर क्या मृत्यू वही हैं जो हम समझते हैं, या उसके भी कोई और रूप हैं।
हर जगह सत्य हैं, पर सिर्फ वह जो कल्पना और सोच से उपजा हैं। जिसे हमने देखा, पढ़ा, सुना और महसूस किया हैं। मगर सच की वास्तविकता से हम आज भी परिचित नही हैं। क्योंकि हम सिर्फ हमारे अनुसार हर चीज, हर वातावरण, हर आवरण को ढालना चाहते हैं, जो हमे ना तो खुद का सत्य जानने देता हैं, ना ही सत्य की वास्तविकता से हमे जुड़ने देता हैं।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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