Friday, August 2, 2019

आत्मा एक विचार

विचार एक बहुत खतरनाक चीज हैं। क्योकी हर चीज की शुरुवात एक विचार से ही होती हैं। या हम यह कह सकते हैं, हर कर्म का होना एक विचार के ही अधीन होता हैं। अब वह कर्म किस दिशा मे, और किस नजरिये से किया जा रहा हैं, यह निर्भर करता हैं, उस विचार की आवृत्ति पर की वह विचार सकारात्मक दृष्टिकोण और सोच से प्रेरित हैं, या नकारात्मक दृष्टिकोण और सोच से प्रेरित। इंसान के कर्मों पर तो उसका जोर हैं, उसे क्या करना हैं या नही। मगर उसके विचारों और सोच पर उसका जोर नही चलता। और कभी कभी कुछ विचार ऐसे भी जाग उठते हैं, जिनकी प्राप्ती के लिये मनुष्य कोई कदम उठाने से नही चुकता। पर जब तक उसे अपने कर्मो का एहसास होता हैं, वह बहुत कुछ कर चुका होता हैं। इसलिये जैसा अपना नजरिया रखोगे, जैसे आचरण को जियोगे वैसे ही विचार आपके अन्दर आयेंगे। वो ही आपको उनकी पुर्ती हेतु कर्म करने के लिये बाध्य करेँगे। इसलिये अपने आपको कभी अपनी सोच का गुलाम मत बनने दो, वरना वह आपसे जो कराएगी उसका कभी पछतावा भी नही कर पाओगे।
अगर मेरे नजरिये से देखे तो, आत्मा और कुछ नही एक पवित्र विचार ही हैं। जो उस परमात्मा से अलग हो, अपनी पूर्णता को प्राप्त कर वापिस उसी परमात्मा मे विलिन होने के लिये ही उससे अलग हुआ हैं, जो जीव रूपी देह को अपने नये वस्त्रों के रूप मे निरन्तर इस्तमाल कर रहा हैं। अब उसकी पूर्णता कौन उसे दिला सकता है, यह आपकी सोच , आपके कर्म और आपके अन्दर उमड़ रहे उन सैकड़ो विचारों और आपके देह के भीतर उपस्थित उस एक पवित्र विचार की महत्ता पर निर्भर करता हैं। आप किसे किस स्थान पर रखते हो।
यह मेरे निजी विचार हैं, जो मैने अनुभव किया हैं। अत: कोई भी व्यक्ति इसे किसी से ना जोड़े ।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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