दिपावली पाँच दिवसीय दीपोत्सव का तीसरा दिन और हिन्दूओ का सबसे प्रमुख त्योहार।
दिपावली बहुत सी मान्यतायें और बहुत सी कथाये जुड़ी हैं, कार्तिक मास की अमावस को मनाये जाने वाले ईस त्योहार से।
जिसमे सबसे अधिक प्रचलित हैं, श्री राम के 14 वर्ष का वनवास पुर्ण कर वापस अयोध्या लौटने की कथा।
एक अन्य कथा भी हैं, जिसके अनुसार समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी के प्रकट होने के बाद , उन्हे भगवान विष्णू को सौंपा गया था। तथा पुर्ण रूप से समुद्र मंथन होने के पश्चात ईस दिन ही भगवान विष्णू और माता लक्ष्मी का विवाह सभी देवताओ के समक्ष विधि-विधान से सम्पन्न हुआ था।
एक अन्य कथा के अनुसार हिरण्याक्ष के पुत्र नरकासुर ने शिव की तपस्या कर, उनसे पाँच अजेय वरदान प्राप्त किये थे। वह पुरे संसार को नरक बना देना चाहता था । तथा लक्ष्मी का विश्व से संहार कर देना चाहता था। उसने माता लक्ष्मी को बन्दी भी बना लिया था। जिसका अन्त माता शक्ती ने कामाख्या रूप धर कर किया था। परंतु उसके अन्त के बाद भी माता लक्ष्मी उसके तन्त्र से मुक्त नही हो पाई थी। अतः फिर माता लक्ष्मी को नरकासुर के तन्त्र से मुक्त कराने व लक्ष्मी के संरक्षण के लिये सभी देवी देवताओं ने माता शक्ती की आज्ञा अनुसार माता लक्ष्मी का पूजन किया था, जिससे माता लक्ष्मी नरकासुर के तन्त्र से मुक्त हो पाई। तभी से कार्तिक मास की काल रात्रि को लक्ष्मी पूजन का विधान बना , और सभी स्त्री-पुरुष इस दिन को लक्ष्मी पूजन के रूप मे पूजने लगे अपनी लक्ष्मी (धन-सम्पदा)को सहेजने के लिये।
दीप प्रज्वलन का विधान श्री राम के वनवास से लौटने के बाद शुरु हुआ। जब अपने भगवान के घर वापसी पर अयोध्या वासियों ने काली रात मे भी दीप प्रज्वलन कर दीपों की रोशनी मे चंद्रमा की चांदनी का दंभ भी हर लिया था।
दीपो का त्योहार हैं आया,
संग हैं अपने खुशियाँ लाया।
घोर तिमीर को दूर करता ,
रौशनी की छंटा बिखेरता।
अंधकार के तमस को हरता,
मन मे उल्लास , उमंग को भरता।
जीवन की सबसे बड़ी सीख देता हैं,
लाख घना अन्धेरा भी
रोशनी की एक ज्योत से हार जाता हैं।
कोई समस्या बड़ी नही हैं,
कोई ताला नही हैं ऐसा ,
जिसकी चाबी बनी नही हैं।
आप सभी परम आदरणीय मित्रों,मेरे प्यारे भाईयों व मेरी प्यारी बहनो को दिपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।
आयुष पंचोली
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