किस चीज का घमंड करु मैं यारो,
मैं तो सेवक ही शमशान के वासी का हूँ।
जहां खत्म सारे अहंकार , सारे रिश्ते हो जाते हैं,
वहाँ से शुरु हमारे प्रभू नाते हो जाते हैं।
यह मान, सम्मान, पद, प्रतिष्ठा का मोह सिर्फ इस देह का होता हैं,
देह मे उपस्थित सुक्ष्म देह को बस उस परमेश्वर से सरोकार होता हैं।
यहाँ का सब यही पर छूट जाना हैं,
कर्मो का सहारा हैं, वही तो साथ जाना हैं।
ना राजा हैं वहाँ कोई ना कोई रंक होता हैं,
वहाँ सिर्फ राख ही राख होता हैं।
जो सबकुछ हैं, वही जाकर के हैं शमशान मे बैठा,
मगर इन्सान को देखो माया के जाल ने ऐठा ।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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