सत्य क्या हैं,
खोजने मैं निकला जब।
एक सत्य को पाया हैं,
जो भी दिखता हैं,
दुनिया मे सब असत्य का साया हैं।
विज्ञान भी कहता हैं यारो,
जो दिखता उस समय के,
कुच क्षण पहले होता हैं।
आंखो की पुतली पर बनने,
वाला प्रतिबिंब, एक महीन अन्तराल का होता हैं।
जो सुना वह सच नही हैं,
जो देखा वह भी झुठा हैं।
जो अपना वह भी झुठा,
जो सपना हैं वह भी झुठा हैं।
जन्म भी झुठ है यहाँ,
जीवन भी यहाँ झुठा हैं।
हर शक्स छुपाये बेठा हैं,
रूप कितने ही खुदमे।
जो जीता हैं मनुष्य,
वह किरदार भी झुठा हैं।
झूठे यह रिश्ते सारे,
सारे बन्धन इस देह के झूठे हैं।
झुठा अपनापन हैं यहाँ,
मान, सम्मान, प्यार,
अपमान, जो होता हैं,
हर व्यापार यहाँ झुठा हैं।
सत्य सिर्फ एक हैं,
नियती सबकी एक हैं,
मार्ग हैं उसके अनेक,
पर अन्त सबका एक हैं।
कोई नही जानता कब,
कहाँ कैसे किसी की इस अटल सत्य से ,
हो जाये भेंट.....!!!!
झुठ से बनी , झुठ की दुनिया मे,
अटल सत्य एक हैं,
एक अन्त से दुसरे आरम्भ का जो,
एक स्तोत्र हैं।
हाँ मृत्यु ही हैं ......
जो एक मात्र सत्य हैं........!!!!!!
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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