राधा की पायल की झनकार , कृष्णा की मुरली की तान हो गई,
सुरो की मोहब्बत का राग क्या छीढ़ा, राधा रानी की छवी कृष्ण कन्हैया की पहचान हो गई।
!!राधे-श्याम!!
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan
राधा की पायल की झनकार , कृष्णा की मुरली की तान हो गई,
सुरो की मोहब्बत का राग क्या छीढ़ा, राधा रानी की छवी कृष्ण कन्हैया की पहचान हो गई।
!!राधे-श्याम!!
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan
🙏🙏🙏🙏❤❤❤
दो जिस्म
एक जान ....
की वो मिसाल
पुरानी हैं।
पवित्र प्रेम
कहते हैं जिसे
दुनिया वाले,
वो राधा कृष्ण की
अनोखी कहानी हैं......!!!!!
प्रेम की परिभाषा का,
एक अद्भूत वो मिलाप हैं।
राधा से वियोग ही तो,
कृष्ण का विलाप हैं।
कोई नही जानता पीड़ा,
कृष्ण की,
राधा का वियोग सब कहते आये हैं।
जिस्म से जब रूह जुदा हो जाये,
वो पीड़ा कहाँ शब्दों मे बयाँ होती हैं।
प्रेम अमर हो जाता हैं,
रूह का रूह से जब मिलन हो जाता है।
जिस्म होता हैं कान्हा,
रूह राधा का एहसास हो जाता हैं।
कुछ ऐसा ही होता हैं,
बन्धन यह पवित्र प्रेम का।
दो जिस्म का एक जान से ,
संगम हो जाता हैं।
रस्मो रिवाजो से परे ,
एक रिश्ता आत्मा से जुड़ जाता हैं।
राधा की आत्मा मे कृष्ण,
कृष्ण की रूह मे राधा का वास हो जाता हैं।
जन्म मृत्यु से परे हो यह,
प्रेम अमर हो जाता है।
क्या खूब प्रेम हैं यह राधा कृष्ण का,
कृष्ण सबका हैं, पर राधा का नाम रटते ही दौडा चला आता हैं।
यह राधे का कृष्ण प्रेम,
राधेश्याम बन मोक्ष का द्वार हो जाता हैं।
!! राधेश्याम-राधेश्याम , श्याम-श्याम, राधे-राधे !!
🙏🙏
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan
मैने बेखौफ़ , बेधडक जीया हैं जिन्दगी को,
मौत को भी हँसकर ही गले से लगाऊंगा।
डर जाऊँ काल को सामने खड़ा देखकर,
अरे छोड़ो यारो, भक्त हूँ महाँकाल का,
हँसते हँसते काल से भी लड़ जाऊँगा......!!!!!!
मैं तो मुस्कुराते हुँए ही जाऊँगा .......!!!!!!
🙏🙏जय श्री महांकाल🙏🙏
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan
राधा का था जो श्याम,
मीरा का वही था घनश्याम।
इश्क राधा का महान,
या तपस्या मीरा की महान।
यह तो बता सकता हैं,
बस वह मुरलीधर घनश्याम।
उसकी लीला वोही जाने,
राधा, रुक्मणी,मीरा,
हो सत्यभामा या गोपियां,
सबके सब क्युं भये उसके दिवाने।
प्रेम किया तो राधे श्याम हो गया,
ज्ञान दिया गीता का तो कृष्ण उसका नाम हो गया।
गईयों को चराने वाला गोपाला ,
मीरा की भक्ति मे घनश्याम हो गया।
रुक्मणी के द्वारकाधीश का,
सुदामा की मित्रता मे मोहन नाम हो गया।
हम तो आये थे दर पर तेरे अरदास लेकर,
तेरी भक्ति के नशे का सुरूर हमारे सर का ताज हो गया।
अब क्या रखा हैं, इस जिस्मानी इश्क की बातों मे,
अब तो इश्क मेरा राधे-श्याम हो गया।
एक नाम क्या लिया दिल ने रूह की आवज सुनकर,
वो गिरधारी, नन्दगोपाल, यशोदा का लाला,
मेरी रूह-ए-सुकून का एक लौता नाम हो गया।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan
व्यक्ति का मन जब भक्ति मे लग जाता हैं, ना तो उसे फिर किसी से कोई फर्क नही पड़ता। कोई कुछ भी सोचे, कुछ भी कहे, किसी के विचारों से ना ही समाज के इन ठेकेदारो से। उसे हर जगह , हर किसी मे तब वही ईश्वर ही नजर आता हैं, और कुछ नही । वही उसका प्रेम बन जाता हैं, और वही समर्पण का मुल आधार। और जब वह ईश्वर कीसी की भक्ति को उस व्यक्ति को अपनाता हैं, तो फ़िर यह नश्वर जीवन का उसके लिये कोई महत्व नही रहता। वह एक अलग ही जीवन जीता हैं, जिसे सिर्फ वह समझ सकता हैं, जिसने ईश्वर को , ईश्वर की सत्ता को जाना हैं, और कोई नही।
नशा नही कोई उसकी भक्ति से बढ़कर,
मैने सबकुछ आजमा कर देख लिया।
तलब जो लगी उसको पाने की,
इस तलब ने मुझको उससे ही जोड दिया।
अब हर वक्त मुझे हर कही वो ही वो नजर आता हैं,
पागल कहते हैं लोग मुझे,
पर मुझे मन्जूर हैं यह पागलपन भी,
मुझे मेरा कर्ता जो इसमे मिल जाता हैं।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan #kuchaisehi
ईश्वर का अस्तित्व जानने के पहले, खुद को जानना आवश्यक हैं। अगर आप खुद को जान चुके हैं, आपकी अन्तरआत्मा की आवाज पहचान चुके हैं। तो यकिन मानिये, आप ईश्वर की सत्ता को भी जान जायेंगे।
सारे प्रश्नों का एक मात्र उत्तर हैं वह।
शायद इसलिये ईश्वर हैं वो.....!!!
जो कण कण मे हैं फिर भी नश्वर नही,
इसलिये ईश्वर हैं वो .......!!!!!
बसा हैं हर मनुष्य मे,
हर व्यक्ति का आत्म चिन्तन हैं वो,
इसलिये ईश्वर हैं वो........!!!!
निराकार होकर भी,साकार हैं वो,
अहंकार से मुक्ति का एक मार्ग द्वार हैं वो।
मृत्यु का दाता, मोक्ष का आधार,
कर्मो का पृतियुत्तर हैं वो,
इसलिये ईश्वर हैं वो........!!!!!
राग , द्वेष, दंभ के पाखण्ड से मुक्त हैं वो,
भावो मे हैं समाया रूप उसका,
एक दिव्य ज्योती मे स्थित बिन्दु हैं वो।
अन्धकार भी हैं, हैं प्रकाश भी,
ग्रीष्म, शरद, शिशिर, हेमंत, बसंत और बरखा की
हर एक आहट का एक एहसास हैं वो।
प्रकृती का हैं प्रेमी,
अग्नी, वायु, जल, आकाश और पृथ्वी,
का पुर्ण आकर हैं वो,
शायद प्रकृती मे ही होकर साकार हैं वो,
ब्रम्हाण्ड की ध्वनी हैं,
उसका आकार हैं वो,
विकारों को हरकर भी निर्विकार हैं वो,
इसलिये ईश्वर हैं वो...........!!!!!!
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan
सत्य क्या हैं,
खोजने मैं निकला जब।
एक सत्य को पाया हैं,
जो भी दिखता हैं,
दुनिया मे सब असत्य का साया हैं।
विज्ञान भी कहता हैं यारो,
जो दिखता उस समय के,
कुच क्षण पहले होता हैं।
आंखो की पुतली पर बनने,
वाला प्रतिबिंब, एक महीन अन्तराल का होता हैं।
जो सुना वह सच नही हैं,
जो देखा वह भी झुठा हैं।
जो अपना वह भी झुठा,
जो सपना हैं वह भी झुठा हैं।
जन्म भी झुठ है यहाँ,
जीवन भी यहाँ झुठा हैं।
हर शक्स छुपाये बेठा हैं,
रूप कितने ही खुदमे।
जो जीता हैं मनुष्य,
वह किरदार भी झुठा हैं।
झूठे यह रिश्ते सारे,
सारे बन्धन इस देह के झूठे हैं।
झुठा अपनापन हैं यहाँ,
मान, सम्मान, प्यार,
अपमान, जो होता हैं,
हर व्यापार यहाँ झुठा हैं।
सत्य सिर्फ एक हैं,
नियती सबकी एक हैं,
मार्ग हैं उसके अनेक,
पर अन्त सबका एक हैं।
कोई नही जानता कब,
कहाँ कैसे किसी की इस अटल सत्य से ,
हो जाये भेंट.....!!!!
झुठ से बनी , झुठ की दुनिया मे,
अटल सत्य एक हैं,
एक अन्त से दुसरे आरम्भ का जो,
एक स्तोत्र हैं।
हाँ मृत्यु ही हैं ......
जो एक मात्र सत्य हैं........!!!!!!
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan
..
सबसे पवित्र मैं स्थान हूँ,
सृष्टी के रचियता का निवास।
दो लोकों के बीच की,
एक अनोखी सी मैं दिवार हूँ।
हर युग के देह की ,
मुक्ति का मैं द्वार हूँ ।
कीसी के अन्त,
कीसी के आरम्भ का सूत्रधार हूँ।
भूत, प्रेत, आत्मा, परमात्मा,
जीव, जीवात्मा....
सबके एक साथ उपस्थित,
होने का एक मात्र प्रमाण हूँ।
मैं श्मशान हूँ.......
मैं श्मशान हूँ.......!!!!!
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan
जब होता हैं अन्त पन्चतत्वो से निर्मित देह का रह जाती हैं राख।
सबसे पवित्र वस्तु जो तत्वों से हीन होती , हाँ वो हैं राख।
राख प्रिय हैं शिव को, काली की मांग का सिन्दूर हैं राख।
पन्चतत्वो से मुक्त हो देह हो जाती राख।
राख ही फिर माटी बन जाती, बड़ाती भुमि की उर्वरक क्षमता हैं राख।
श्रंगार तपस्वियों का, वन्दन ऋषियों का,
हवन का शेष हैं राख।
कोई भाल पर टिके की तरह सजाता,
कोई चुटकी भर प्रसाद की तरह हैं खाता।
कोई भस्मी के रूप मे हैं इसे अपनाता,
सबसे उत्तम, सबसे ज्यादा गुणकारी हैं राख।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan
उसकी रहमतो का दरिया कभी थमता नही हैं,
कौई नही हैं जिसका जीवन उसके दर पर जाके बदला नही हैं।
वह काल के कपाल पर लिखकर मिटाता जाता हैं,
तभी तो मेरा बाबा "महांकाल" कहलाता हैं।
कोई उसके दर पर बड़ा, छोटा नही हैं,
भाग्य को पलट देता हैं वो पल भर मे ही मन गर खोटा नही हैं।
भाव का भूखा हैं, नीयमों मे वो बंधता नही हैं,
मेरा दाता देने मे कभी झिझकता नही हैं।
मैं भिखारी हूँ, उससे मांगता रहता,
वो पिता मेरा मुझे आबाद रखता हैं।
मेरी अरदास का देखो वो कैसे मान रखता हैं,
कहूँ कैसे भला बोलो, वो हर पल मेरा ध्यान रखता हैं।
मैं काबिल नही इतना उसे कुछ भेंट दे पाऊँ,
इसलिये खुद ही को उसको भेंट मे समर्पण हो जाऊँ.....!!!!
🕉 नमः शिवाय
जय श्री महांकाल
🙏🙏🙏🙏🙏
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan
किस चीज का घमंड करु मैं यारो,
मैं तो सेवक ही शमशान के वासी का हूँ।
जहां खत्म सारे अहंकार , सारे रिश्ते हो जाते हैं,
वहाँ से शुरु हमारे प्रभू नाते हो जाते हैं।
यह मान, सम्मान, पद, प्रतिष्ठा का मोह सिर्फ इस देह का होता हैं,
देह मे उपस्थित सुक्ष्म देह को बस उस परमेश्वर से सरोकार होता हैं।
यहाँ का सब यही पर छूट जाना हैं,
कर्मो का सहारा हैं, वही तो साथ जाना हैं।
ना राजा हैं वहाँ कोई ना कोई रंक होता हैं,
वहाँ सिर्फ राख ही राख होता हैं।
जो सबकुछ हैं, वही जाकर के हैं शमशान मे बैठा,
मगर इन्सान को देखो माया के जाल ने ऐठा ।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan
अयि गिरिनंदिनि नंदितमेदिनि विश्वविनोदिनि नंदनुते
गिरिवर विंध्य शिरोधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुंबिनि भूरि कुटुंबिनि भूरि कृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१॥
भावार्थ-
पर्वतराज हिमालय की कन्यारुपिणी, पृथ्वी को आनन्दित करने वाली, संसार को हर्षित रखने वाली, नंदीगण से नमस्कार की जाने वाली गिरि श्रेष्ठ विन्ध्याचल के शिखर पर निवास करने वाली, भगवान विष्णू को प्रसन्न रखने वाली, इन्द्र से नमस्कृत होने वाली, भगवान शिव की भार्या के रूप मे प्रतिष्ठित, विशाल कुटुम्ब वाली और ऐश्वर्य प्रदान करने वाली, हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुरमर्दिनी पार्वती (दूर्गा) आपकी जय हो, जय हो.....(1)
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सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते ।
दनुज निरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मद शोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥२॥
भावार्थ-
देवराज इन्द्र को समृद्धशाली बनाने वाली, दुर्धर तथा दुर्मख नामक दैत्यो का विनाश करने वाली, सर्वदा हर्षित रहने वाली, तीनो लोको का पालन-पोषण करने वाली, भगवान शिव को संतुष्ट रखने वाली , पाप को दूर करने वाली, घोर गर्जन करने वाली, दैत्यों पर भीषण कोप करने वाली, मदांधो के मद का हरण कर लेने वाली, सदाचार से रहित मुनिजनो पर क्रोध करने वाली और समुद्र की कन्या के रूप मे प्रतिष्ठित, हे माता महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) आपकी जय हो, जय हो.......(2)
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अयि जगदंब मदंब कदंब वनप्रिय वासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्ग हिमालय शृंग निजालय मध्यगते ।
मधु मधुरे मधु कैटभ गंजिनि कैटभ भंजिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥३॥
भावार्थ-
जगत की मातास्वरुपिणी, कदम्ब वृक्ष के वन मे प्रेम पूर्वक निवास कारने वाली, सदा संतुष्ट रहने वाली, हास-परिहास मे सदा रत रहने वाली, पर्वतों मे श्रेष्ठ ऊँचे हिमालय की चोटी पर अपने भवन मे विराजमान रहने वाली, मधु से भी अधिक मधुर स्वभाव वाली, मधुकैटभ का संहार करने वाली, महिष को विदीर्ण कर डालने वाली और रासक्रीड़ा मे मग्न रहने वाली माता महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) आपकी जय हो, जय हो.....(3)
-------
अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुण्ड गजाधिपते
रिपु गज गण्ड विदारण चण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते ।
निज भुज दण्ड निपातित खण्ड विपातित मुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥४॥
भावार्थ-
गजाधिपति के बिना सूंड के धड़ को काट-काटकर सैकड़ो टुकड़े कर देने वाली, सेनाधिपति चण्ड-मुण्ड नामक दैत्यों को अपने भुज-दण्ड से मार-मारकर विदीर्ण कर देने वाली, शत्रुओं के हाथियों के गण्ड़स्थल को भग्न करने मे उत्क्रष्ट पराक्रम से सम्पन्न कुशल सिंह पर आरूढ होने वाली, हे माता महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) आपकी जय हो, जय हो.......(4)
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अयि निज हुँकृति मात्र निराकृत धूम्र विलोचन धूम्र शते
समर विशोषित शोणित बीज समुद्भव शोणित बीज लते ।
शिव शिव शुंभ निशुंभ महाहव तर्पित भूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥५॥
भावार्थ-
अपने हुंकार मात्र से धुम्रलोचन धुम्र आदि सैकड़ो असुरों को भस्म कर डालने वाली, युद्ध भुमि मे कुपित रक्तबीज के रक्त से उत्पन्न हुए अन्य रक्तबीज समुहों का रक्त पी जाने वाली और शुम्भ-निशुम्भ नामक दैत्यों के महायुद्ध से तृप्त किये मंगलकारी शिव के भूत-पिशाचों के प्रति अनुराग रखने वाली, हे माता महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) आपकी जय हो, जय हो......(5)
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धनुरनु संग रणक्षणसंग परिस्फुर दंग नटत्कटके
कनक पिशंग पृषत्क निषंग रसद्भट शृंग हतावटुके ।
कृत चतुरङ्ग बलक्षिति रङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥६॥
भावार्थ-
समरभूमि मे धनुष धारण कर अपने शरीर को केवल हिलाने मात्र से शत्रु दल को कम्पित कर देने वाली, स्वर्ण के पीले वर्ण के तीर और तरकश से युक्त भीषण योद्धाओं के सिर काटने वाली और चारो प्रकार की सेनाओं का संहार करके रणभूमि मे अनेक प्रकार की शब्द्ध्वनि करने वाले बटुकों को उत्पन्न करने वाली, हे माता महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) आपकी जय हो, जय हो......(6)
-------
अयि रण दुर्मद शत्रु वधोदित दुर्धर निर्जर शक्तिभृते
चतुर विचार धुरीण महाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।
दुरित दुरीह दुराशय दुर्मति दानवदूत कृतांतमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥७॥
भावार्थ-
रणभुमि मे मदोन्मत्त शत्रुओं के वध से बढ़ी हुई अदम्य तथा पुर्ण शक्तिधारा धारण करने वाली, चातुर्यवर्ण विचार वाले लोगो मे श्रेष्ठ और गम्भीर कल्पना वाले प्रमथाधिपति भगवान शंकर को दूत बनाने वाली , पापी , दूषित कामनाओ तथा कुत्सित विचारों वाले दुरबुध्दि दानवो के दूतों से न जानी जा सकने वाली, हे माता महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) आपकी जय हो, जय हो.......(7)
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अयि शरणागत वैरि वधूवर वीर वराभय दायकरे
त्रिभुवन मस्तक शूल विरोधि शिरोधि कृतामल शूलकरे ।
दुमिदुमि तामर दुंदुभिनाद महो मुखरीकृत तिग्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥८॥
भावार्थ-
शरणागत शत्रुओ की स्त्रियो के वीर पतियों को अभय प्रदान करने वाले हाथ से शोभा पाने वाली, तीनों लोको को पीड़ित करने वाले दैत्यशत्रुओं के मस्तक पर प्रहार करने योग्य तेजोमय त्रिशूल हाथ मे धारण करने वाली तथा देवताओं की दूँदूभी से दुम-दुम इस प्रकार की ध्वनि से समस्त दिशाओं को बार-बार गुंजित करने वाली, हे माता महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) आपकी जय हो, जय हो......(8)
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सुरललनात तथेयित तथेयित थाभिनियोत्तरनृत्यरते।
कृतकु कुथाकु कुथोदि डदाडिक तालकुतूहलगानरते।
धुधुकुट धुधुट धिन्धिमितध्वनि घोरमृदंगनिनादरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥९॥
भावार्थ-
देवांगनाओं के मधुर शब्दों से युक्त भावमय नृत्य में मग्न रहने वाली, कुकुथा आदि विभिन्न प्रकार की मात्राओ वाले तालों से युक्त आश्चर्यमय गीतों को सुनने मे लीन रहने वाली और मृदंग की धुधुकुट-धुधुट आदि गम्भीर ध्वनि को सुनने मे तत्पर रहने वाली , हे माता महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) आपकी जय हो, जय हो.......(9)
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जय जय जप्य जयेजय शब्द परस्तुति तत्पर विश्वनुते
झण झण झिञ्जिमि झिंकृत नूपुर सिंजित मोहित भूतपते ।
नटित नटार्ध नटीनट नायक नाटित नाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१०॥
भावार्थ-
हे जपनीय मन्त्र की विजय शक्तीस्वरुपिणी ! आपकी बार-बार जय हो। जय-जयकार शब्दसहित स्तुति करने मे तत्पर समस्त संसार के लोगो से नमस्कृत होने वाली, अपने नूपुर के झण-झण, झिंझिम शब्दों से भूतनाथ भगवान शंकर को मोहित करने वाली और नटी-नटों के नायक प्रसिद्ध नट अर्द्धनारीश्वर शंकर के नृत्य से सुशोभित नाट्य देखने मे तल्लीन रहने वाली, हे माता महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) आपकी जय हो, जय हो.......(10)
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अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहर कांतियुते
श्रित रजनी रजनी रजनी रजनी रजनीकर वक्त्रवृते ।
सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥११॥
भावार्थ-
प्रसन्नचित तथा संतुष्ट देवताओ के द्वारा अर्पित किये गये पुष्पों से अत्यंत मनोरम कान्ति धारण करने वाली, निशाचरो को वर प्रदान करने वाले शिवजी की भार्या, रात्रिसूक्त से प्रसन्न होने वाली, चन्द्रमा के समान मुखमण्डल वाली और सुन्दर नेत्र वाले कस्तूरी मृगो मे व्याकुलता उत्पन्न करने वाले भौंरो से तथा भ्रांति को दूर करने वाले ज्ञानियों द्वारा अनुसरण की जाने वाली, हे माता महिशसुरमर्दिनी आपकी जय हो, जय हो.......(11)
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सहित महाहव मल्लम तल्लिक मल्लित रल्लक मल्लरते
विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्ग वृते ।
सितकृत पुल्लिसमुल्ल सितारुण तल्लज पल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१२॥
भावार्थ-
महनीय महायुद्ध के श्रेष्ठ वीरों के द्वारा घुमावदार तथा कलापूर्ण ढंग से चलाये गये भालों के युद्ध के निरीक्षण मे चित्त लगाने वाली, कृत्रिम लताग्रह का निर्माण कर उसका पालन करने वाली , स्त्रियो की बस्ती मे झिल्लिक नामक वाध्विशेष बजाने वाली, भिल्लिनियों के समूह से सेवित होने वाली और कान पर रखे हुए विकसित सुन्दर रक्तवर्ण तथा श्रेष्ठ कोमल पत्तो से सुशोभित होने वाली, हे माता महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) आपकी जय हो, जय हो.......(12)
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अयि सुद तीजन लालसमानस मोहन मन्मथ राजसुते
अविरल गण्ड गलन्मद मेदुर मत्त मतङ्गज राजपते
त्रिभुवन भूषण भूत कलानिधि रूप पयोनिधि राजसुते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१३॥
भावार्थ-
सुन्दर दंत्पंक्ति वाली स्त्रियो के उत्कण्ठापुर्ण मन को मुग्ध कर देने वाले कामदेव को जीवन प्रदान करने वाली, निरंतर मद मद छुते हुए गण्डस्थल से युक्त मदोन्मत्त गजराज के सदृश मन्थर गति वाली और तीनों लोको के आभूषण स्वरूप चंद्रमा के समान कान्तियुक्त सागर-कन्या के रूप मे प्रतिष्ठित, हे माता महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) आपकी जय हो, जय हो.......(13)
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कमल दलामल कोमल कांति कलाकलितामल भाललते
सकल विलास कलानिलयक्रम केलि चलत्कल हंस कुले ।
अलिकुल सङ्कुल कुवलय मण्डल मौलिमिलद्भकुलालि कुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१४॥
भावार्थ-
कमलदल के सदृश वक्र, निर्मल और कोमल कान्ति से परिपूर्ण कलाओ से युक्त चंद्रमा से सुशोभित उज्जवल ललाट-पटल वाली, सम्पूर्ण विलासो की कलाओं की आश्रयभूत मन्दगति तथा क्रीड़ा से सम्पन्न राजहंसो के समुदाय से सुशोभित होने वाली और भौंरो के सदृश काले तथा सघन केशपाश की चोटी पर शोभयमान मौलसिरी-पुष्पो की सुगंध से भ्रमर समूहों को आक्रष्ट करने वाली, हे माता महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) आपकी जय हो, जय हो.......(14)
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कर मुरली रव वीजित कूजित लज्जित कोकिल मञ्जुमते
मिलित पुलिन्द मनोहर गुञ्जित रंजितशैल निकुञ्जगते ।
निजगुण भूत महाशबरीगण सद्गुण संभृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१५॥
भावार्थ-
आपके हाथ मे सुशोभित मुरली की ध्वनि सुनकर बोलना बंद करके लाज से भरी हुई कोकिल के प्रति प्रियभावना रखने वाली, भौंरो के समूहों को मनोहर गूँज से सुशोभित पर्वत-प्रदेश के निकुंजो मे विहार करने वाली और अपने भूत तथा भिल्लिनी आदि गणों के नृत्य से युक्त क्रीड़ाओ को देखने मे सदा तल्लीन रहने वाली, हे माता महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) आपकी जय हो, जय हो......(15)
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कटितट पीत दुकूल विचित्र मयूखतिरस्कृत चंद्र रुचे ।
जित कनकाचल मौलिपदोर्जित निर्भर कुंजर कुंभकुचे ।
प्रणत सुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुल सन्नख चंद्र रुचे ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१६॥
भावार्थ-
अपने कटिप्रदेश पर सुशोभित पीले रंग के रेशमी वस्त्र विचित्र कान्ति से सुर्य की प्रभा को तिरस्कृत कर देने वाली, सुमेरु पर्वत के शिखर पर मदोन्मत गर्जना करने वाले हाथियों के गण्डस्थल के समान वक्ष:स्थल वाली औरा आपको प्रणाम करने वाले देवताओ तथा दैत्यो के मस्तक पर स्थित मणियो से निकली हुई किरणो से प्रकाशित , चरणनखो मे चंद्रमा सदृश कान्ति धारण करने वाली, हे माता महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) आपकी जय हो, जय हो.....(16)
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विजित सहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृत सुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते ।
सुरथ समाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१७॥
भावार्थ-
हजारों हस्त नक्षत्रों को जीतने वाले, सहस्त्र किरणों वाले भगवान सूर्य की एकमात्र नमस्करणीय, देवताओ के उद्धार हेतु युद्ध करने वाले, तारकासुर से संग्राम करने वाले तथा संसार सागर से पार करने वाले शिव जी के पुत्र कार्तिकेय से प्रणाम की जाने वाली और राजा सुरथ तथा समाधि नामक वैश्य की सविकल्प समाधि के समान समाधियो मे सम्यक जपे जाने वाले मन्त्रो मे प्रेम रखने वाली, हे माता महिषासुरमर्दिनी आपकी जय हो, जय हो.....(17)
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पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं स शिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परंपदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१८॥
भावार्थ-
हे करुणामयी कल्याणमयी शिवे! हे कमलवासिनी कमले ! जो मनुष्य प्रतिदिन आपके चरणकमल की उपासना करता हैं, उसे लक्ष्मी का आश्रय क्यो नही प्राप्त होगा! हे शिवे ! आपका चरण ही परमपद (मोक्ष) हैं। ऐसी भावना रखने वाले मुझ भक्त को क्या-क्या सुलभ नही हो जायेगा अर्थात सबकुछ प्राप्त हो जायेगा। हे माता महिषासुरमर्दिनी आपकी जय हो , जय हो.....(18)
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कनकलसत्कल सिन्धु जलैरनु सिञ्चिनुते गुण रङ्गभुवं
भजति स किं न शचीकुच कुंभ तटी परिरंभ सुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवं
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१९॥
भावार्थ-
स्वर्ण के समान चमकते घडो के जल से जो आपके प्रांगण की रंगभूमि को प्रक्षालित कर उसे स्वच्छ बनाता हैं, वह इन्द्राणी के समान सुन्दरियों के सानिध्य का सुख अवश्य ही प्राप्त करता हैं। हे सरस्वती ! मैं आपके चरणों को ही अपनी शरणस्थली बनाऊं! मुझे कल्याणकारक मार्ग प्रदान करो। हे माता महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) आपकी जय हो, जय हो.....(19)
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तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूत पुरीन्दुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥२०॥
भावार्थ-
स्वच्छ चंद्रमा के सदृश सुशोभित होने वाले आपके मुखचंद्र को निर्मल करके जो आपको प्रसन्न कर लेता हैं, उसे देवराज इन्द्र के समान सभी सुखो की प्राप्ति होती हैं। भगवान शिव के सम्मान को अपना सर्वस्व समझने वाली, हे भगवती, मेरा तो यह विश्वास हैं, आपकी कृपा से सबकुछ सिद्ध हो जाता हैं। हे माता महिषासुरमर्दिनी आपकी जय हो, जय हो.......(20)
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अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथाऽनुमितासिरते ।
यदुचितमत्र भवत्युररि कुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥२१॥
स्तुतिमिमां स्तिमित: सुसमाधिना नियमितो यमतोअनुदिनं पठेत।
परमया रमया स निषेव्यते परिजनोअरिजनोअपि च तं भजेत।।
भावार्थ-
हे उमे! आप सदा दीन-दुखियों पर दया का भाव रखती हैं, अत: आप मुझ पर कृपालु बनी रहे। हे महालक्ष्मी! जैसे आप सारे संसार की माता हैं, वैसे ही मैं आपको अपनी भी माता समझता हूँ। हे शिवे ! यदि आपको उचित प्रतीत होता हो तो मुझे अपने लोक मे जाने की योग्यता प्रदान करे। हे देवी! मुझपर दया करे। हे माता महिषासुरमर्दिनी आपकी जय हो, जय हो.....(21)
जो मनुष्य शान्तभाव से पुर्णरूप से मन को एकाग्र करके तथा इन्द्रियों पर नियन्त्रण कर नियमपूर्वक प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, भगवती महालक्ष्मी उसके यहाँ सदा वास करती हैं। और उसके बन्धु-बांधव तथा शत्रुजन भी सदा उसकी सेवा मे तत्पर रहते हैं।
॥इति श्रीमहिषासुरमर्दिनि स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
आयुष पंचोली
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