Friday, December 7, 2018

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राधा का था जो श्याम,
मीरा का वही था घनश्याम।
इश्क राधा का महान,
या तपस्या मीरा की महान।
यह तो बता सकता हैं,
बस वह मुरलीधर घनश्याम।
उसकी लीला वोही जाने,
राधा, रुक्मणी,मीरा,
हो सत्यभामा या गोपियां,
सबके सब क्युं भये उसके दिवाने।
प्रेम किया तो राधे श्याम हो गया,
ज्ञान दिया गीता का तो कृष्ण उसका नाम हो गया।
गईयों को चराने वाला गोपाला ,
मीरा की भक्ति मे घनश्याम हो गया।
रुक्मणी के द्वारकाधीश का,
सुदामा की मित्रता मे मोहन नाम हो गया।
हम तो आये थे दर पर तेरे अरदास लेकर,
तेरी भक्ति के नशे का सुरूर हमारे सर का ताज हो गया।
अब क्या रखा हैं, इस जिस्मानी इश्क की बातों मे,
अब तो इश्क मेरा राधे-श्याम हो गया।
एक नाम क्या लिया दिल ने रूह की आवज सुनकर,
वो गिरधारी, नन्दगोपाल, यशोदा का लाला,
मेरी रूह-ए-सुकून का एक लौता नाम हो गया।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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