इस तथाकथित सभ्य समाज के बनाये,
सभी खोखले नीयमो से मैं कोसों दूर हूँ।
भभूत हैं वस्त्र मेरा,
पन्चभूतो के मायाजाल से मुक्त,
पन्चतत्वो से बना तुम लोगों सा ही शरीर हूँ।
मैं अघोर हूँ........!!!!!
बनावटी हैं दुनिया यह,
दिखावे के रिश्ते नातें हैं।
सुख ,दुख , और जितने हैं शौक सारे,
इस देह के बस दिखावे हैं।
इन मनुष्य रूपी विकारों से ,
बहुत दूर छोड़ आया खुद को,
सभी सुख सुविधाओं से दूर मुक्ति को तलाशता,
एक आत्मा का निवास हूँ,
मैं अघोर हूँ..........!!!!!
दूर हूँ इस सघन आबादी की दुनिया से,
हिमालय की वादियों,
शक्तिपीठों और ज्योतिर्लिंगो के ही समीप,
खोज रहा अपने अस्तित्व को,
दुनियादारी से दूर ,
शिव, शक्ती और भैरव के समीप हूँ,
मैं अघोर हूँ.........!!!!!!
प्रकृती को ओडता हूँ,
प्रकृती को ही बिछाता हूँ।
प्रकृती का दामन ही हैं मेरा अपना,
प्रकृती को ही जीवन का एक मात्र सार सुनाता हूँ ।
जहाँ जाना इस खोखले सामाज वाले पाप मानते हैं,
जिसे दुनिया वाले अशुद्ध मानते हैं।
उन्ही वस्तुओं और स्थानों मे,
अपना जीवन बिताता हूँ ,
मैं अघोर हूँ........!!!!!!
दुनिया वालों की नजरों मे,
तंत्र , मन्त्र , यंत्र का कारक हूँ।
मैं जीवन नहीं हूँ,
मैं प्रकृती के बनाये नियमों का पालक हूँ।
वस्त्र नही तन पर मेरे,
भस्म, भभूत और कंकालो के अवशेष होते हैं।
ब्रह्माण्ड मे हैं जो सबसे ज्यादा शुद्ध,
वही हमारे जीवन के घोटक होते हैं।
मैं सामान्य जन जीवन से दूर,
मनुष्य शरीर के सभी विकारो पर पाकर बैठा विजय,
मोक्ष की तलाश मे,
नाचता मृत्यू का गुरूर हूँ।
मैं अघोर हूँ......!!!!!!!
काल से परे हैं जो शक्तियाँ,
महाकाल, महाकाली,
काल भैरव को समर्पित ,
काल का सेवक,
उन्ही से होकर उन्ही की भक्ति के मद मे चूर हूँ ।
मैं अघोर हूँ......!!!!!
मैं अघोर हूं.......!!!!!
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan #sanatandharm #ayuspiritual
सभी खोखले नीयमो से मैं कोसों दूर हूँ।
भभूत हैं वस्त्र मेरा,
पन्चभूतो के मायाजाल से मुक्त,
पन्चतत्वो से बना तुम लोगों सा ही शरीर हूँ।
मैं अघोर हूँ........!!!!!
बनावटी हैं दुनिया यह,
दिखावे के रिश्ते नातें हैं।
सुख ,दुख , और जितने हैं शौक सारे,
इस देह के बस दिखावे हैं।
इन मनुष्य रूपी विकारों से ,
बहुत दूर छोड़ आया खुद को,
सभी सुख सुविधाओं से दूर मुक्ति को तलाशता,
एक आत्मा का निवास हूँ,
मैं अघोर हूँ..........!!!!!
दूर हूँ इस सघन आबादी की दुनिया से,
हिमालय की वादियों,
शक्तिपीठों और ज्योतिर्लिंगो के ही समीप,
खोज रहा अपने अस्तित्व को,
दुनियादारी से दूर ,
शिव, शक्ती और भैरव के समीप हूँ,
मैं अघोर हूँ.........!!!!!!
प्रकृती को ओडता हूँ,
प्रकृती को ही बिछाता हूँ।
प्रकृती का दामन ही हैं मेरा अपना,
प्रकृती को ही जीवन का एक मात्र सार सुनाता हूँ ।
जहाँ जाना इस खोखले सामाज वाले पाप मानते हैं,
जिसे दुनिया वाले अशुद्ध मानते हैं।
उन्ही वस्तुओं और स्थानों मे,
अपना जीवन बिताता हूँ ,
मैं अघोर हूँ........!!!!!!
दुनिया वालों की नजरों मे,
तंत्र , मन्त्र , यंत्र का कारक हूँ।
मैं जीवन नहीं हूँ,
मैं प्रकृती के बनाये नियमों का पालक हूँ।
वस्त्र नही तन पर मेरे,
भस्म, भभूत और कंकालो के अवशेष होते हैं।
ब्रह्माण्ड मे हैं जो सबसे ज्यादा शुद्ध,
वही हमारे जीवन के घोटक होते हैं।
मैं सामान्य जन जीवन से दूर,
मनुष्य शरीर के सभी विकारो पर पाकर बैठा विजय,
मोक्ष की तलाश मे,
नाचता मृत्यू का गुरूर हूँ।
मैं अघोर हूँ......!!!!!!!
काल से परे हैं जो शक्तियाँ,
महाकाल, महाकाली,
काल भैरव को समर्पित ,
काल का सेवक,
उन्ही से होकर उन्ही की भक्ति के मद मे चूर हूँ ।
मैं अघोर हूँ......!!!!!
मैं अघोर हूं.......!!!!!
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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