अधर्म पर धर्म की विजय की गाथा है महाभारत,
छल और युति ही युद्ध का निर्णय करते हैं उसका प्रमाण हैं महाभारत।
कई योद्धाओं का पराक्रम का आधार हैं महाभारत,
कितने ही वीरों का बलिदान हैं महाभारत।
ऐसा ही एक योद्धा था, जो इस युद्ध मे भाग ले ना पाया,
कृष्ण की युति को वो समझ ना पाया।
भीम पुत्र घटोत्कच और नाग कन्या अहिलावती का वो पुत्र था,
गर्भ से ही जो अनोखी सिद्धियों से युक्त था।
जन्म हुआ जब उसका तो पाण्डव कुल गौरवान्वित था,
ऐसा ही महान योद्धा बर्बरीक था।
माता से पाई थी शिक्षा जिसने निर्बल का हर पल साथ देने की,
थी क्षमता जिसमे मात्र अपने तीन बाणो से समस्त ब्रह्माण्ड को जितने की।
जब कृष्ण ने जाना यह तथ्य, विचार आया उन्हे कौरव कमजोर पडने लगे तो,
बर्बरीक साथ उनका देगा,
इस वीर के आगे तो महाभारत का निर्णय ही कुछ और होगा।
बनाकर भेष ब्रह्माण का कृष्ण मिलने उससे आये,
उसे अपने छल मे लेकर युद्ध मे भाग लेने के कुछ नीयम अलग बताये।
बोले वो ब्रह्माण भेष धारी भगवन युद्ध मे भाग लेने वाले हर शख्स को पहले अपना शीश रणचंडी को भेंट करना पड़ता हैं,
उसी के पश्चात मौका उसे युद्ध मे भाग लेने का मिलता हैं।
सुनकर बात कृष्ण की उस वीर ने पल भर मे शीश अपना उन्हे भेंट कर दिया,
देखकर उसका यह प्रताप श्री कृष्ण का शीश भी सम्मान मे उसके झुक गया।
तब कृष्ण अपने वास्तविक रूप मे उसके सामने आये,
बोले बर्बरीक मांगो क्या चाहते हो तुम्हारे प्रताप के आगे तो हम भी नतमस्तक हो जाये।
बर्बरीक बोला हे भगवन मैं युद्ध का समस्त दर्शन अपनी आंखो से करना चाहता हूँ,
कोई दुजी ख्वाईश नही मेरी फिर बस मुक्ति चाहता हूँ।
कृष्ण शीश उठा उस वीर का उँचे पर्वत पर रख आये,
जहाँ से युद्ध के दर्शन वीर को सुलभ हो जायें।
युद्ध हुआ समाप्त जब , और पाण्डव आपस मे अपनी वीरता के बखान करते थे,
सब युद्ध की विजय को अपने नाम करते थे।
जब युद्ध की विजय का कारण जानने सब कृष्ण के समक्ष आये।
कृष्ण बोले महान बर्बरीक ने युद्ध का सारा हाल देखा हैं,
क्यो ना सब मिलकर उनके समक्ष जायें।
जब सब मिलकर बर्बरीक के शीश के समक्ष खड़े थे,
सबके मन मे सिर्फ अपनी वीरता की महानता का वर्णन सुनने के भाव उमडे थे।
जब सबने पुछा हे वीर , कौन हैं जिसकी वीरता ने युद्ध हमे जिताया,
कौन वीर हैं वह जिसने युद्ध मे अपना उत्कृष्ट शौर्य दिखाया।
बर्बरीक बोले हे वीरों कोई नही था युद्ध मे बस सुदर्शन चल रहा था,
शीश काट वीरों के वह अपना कर्म सफल कर रहा था।
सुदर्शन से कटे शीश सब , रक्त का पान चंडी करती थी,
मेरी नजर मे युद्ध नही बस कृष्ण की नीति और युक्ति ही काम करती थी।
जब सबने इस तथ्य को जाना, नजर झुका सब बोले,
हे वीर नमन हैं तुमको तुमने अहं के समस्त विकार हमसे छिने।
कृष्ण ने वरदान दिया उस वीर को , तुम कृष्ण के रूप मे ही युगो युगो तक पूजे जाओगे,
अब से तुम हे वीर "खाटू-श्याम" कहलाओगे।
सोचो कितना महान ,कितना धैर्यवान, कितना बलशाली था वो योद्धा,
जिसे कृष्ण ने अपने रूप मे पूजित होने का मान दिया था।
आज जिसे जग "खाटू-श्याम" के रूप मे पूजता हैं सारा,
कहते हैं सभी हर पल,
"हारे का सहारा, बाबा श्याम हमारा "🙏🙏🙏🙏
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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