महान आर्यावर्त के, एक महान शासक का नाम आज किस्से कहानियों तक ही सिमित रह गया,
कहीं बेताल-पच्चिसी के नाम मे, कहीं एक महान सम्राट सिंहासन बत्तिसी की कहानियों मे ही कही खो गया।
नाम से ही जिनके सुर्य सा तेज और पराक्रम झलकता था,
था एक ऐसा भी सम्राट कोई जिसके आगे पुरा संसार ही नतमस्तक था।
महिलाओं को जिसने पुर्ण सम्मान का अधिकार दिया था,
उज्जैनी के सम्राट महांकाल के भक्त ने अवंतिका को संसार की एक मात्र राजधानी का दर्जा प्रदान किया था।
वह सम्राट जिसने काल भैरव को ब्रह्म हत्या के श्राप से मुक्ति दिलाई थी,
वह सम्राट जिसने ग्रहो मे सुर्य को श्रेष्टता की उपाधि दिलाई थी।
जिसके बनाये नियमों को आज भी संसार पूजता हैं,
एक हमारा ही देश हैं, जो अपनो की वास्तविकता को भुला, दूसरो की नंगाई का गुणगान करता हैं।
वह सम्राट जिनके दरबार से कभी कोई व्यक्ति बिना इंसाफ पाये नही लौटा था,
वह सम्राट जिनके बनाये संवत्सर से ही आर्यावर्त का नया साल प्रारम्भ होता हैं।
विक्रम संवत् को सब जानते हैं,
पंचांग की शुरुवात ही विक्रमादित्य के काल से मानते हैं।
सम्राट विक्रमादित्य ने अपने शासन काल मे हजारो मन्दिरों का निर्माण कराया था,
यहीं थे वह सम्राट जिनके शासन काल मे आधुनिक नीतियो का अस्तित्व सबके समक्ष आया था।
कौई ऐसी उपलब्धी नही थी जो सम्राट विक्रमादित्य ने हांसिल ना की हो,
कौन रहा ऐसा शासक जिसने उनकी नीतियों को अपने राज्य की व्यवस्था मे शामिल ना की हो।
सम्राट विक्रमादित्य का दरबार महकता था नौ रत्नो से,
धन्वन्तरि, क्षपनक, अमरसिंह, शंकु, खटकरपारा, कालिदास, वेतालभट्ट (या (बेतालभट्ट), वररुचि, वराहमिहिर जिनके नाम थे।
आयुर्वेद, युद्ध कला, राज व्यवस्था, जनकार्य, विद्यादान, काव्य, पूजन-पाठ,
व्यवस्थापक और ज्योतिष का ज्ञान राजा को देना जिनके कार्य थे।
राम राज्य भी था, कृष्ण सा अकन्टक राज भी था,
सम्राट विक्रमादित्य का काल आर्यावर्त का स्वर्णिम काल ही था।
पर राजनीति ने ऐसे महान शासक का नाम इतिहास से ही मिटा दिया,
जिसने भारत को विश्वगुरु बनाया था, उसको सिर्फ कहानियों मे ही छुपा दिया।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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