Sunday, January 20, 2019

अघोर

इस तथाकथित सभ्य समाज के बनाये,
सभी खोखले नीयमो से मैं कोसों दूर हूँ।
भभूत हैं वस्त्र मेरा,
पन्चभूतो के मायाजाल से मुक्त,
पन्चतत्वो से बना तुम लोगों सा ही शरीर हूँ।
मैं अघोर हूँ........!!!!!
बनावटी हैं दुनिया यह,
दिखावे के रिश्ते नातें हैं।
सुख ,दुख , और जितने हैं शौक सारे,
इस देह के बस दिखावे हैं।
इन मनुष्य रूपी विकारों से ,
बहुत दूर छोड़ आया खुद को,
सभी सुख सुविधाओं से दूर मुक्ति को तलाशता,
एक आत्मा का निवास हूँ,
मैं अघोर हूँ..........!!!!!
दूर हूँ इस सघन आबादी की दुनिया से,
हिमालय की वादियों,
शक्तिपीठों और ज्योतिर्लिंगो के ही समीप,
खोज रहा अपने अस्तित्व को,
दुनियादारी से दूर ,
शिव, शक्ती और भैरव के समीप हूँ,
मैं अघोर हूँ.........!!!!!!
प्रकृती को ओडता हूँ,
प्रकृती को ही बिछाता हूँ।
प्रकृती का दामन ही हैं मेरा अपना,
प्रकृती को ही जीवन का एक मात्र सार सुनाता हूँ ।
जहाँ जाना इस खोखले सामाज वाले पाप मानते हैं,
जिसे दुनिया वाले अशुद्ध मानते हैं।
उन्ही वस्तुओं और स्थानों मे,
अपना जीवन बिताता हूँ ,
मैं अघोर हूँ........!!!!!!
दुनिया वालों की नजरों मे,
तंत्र , मन्त्र , यंत्र का कारक हूँ।
मैं जीवन नहीं हूँ,
मैं प्रकृती के बनाये नियमों का पालक हूँ।
वस्त्र नही तन पर मेरे,
भस्म, भभूत और कंकालो के अवशेष होते हैं।
ब्रह्माण्ड मे हैं जो सबसे ज्यादा शुद्ध,
वही हमारे जीवन के घोटक होते हैं।
मैं सामान्य जन जीवन से दूर,
मनुष्य शरीर के सभी विकारो पर पाकर बैठा विजय,
मोक्ष की तलाश मे,
नाचता मृत्यू का गुरूर हूँ।
मैं अघोर हूँ......!!!!!!!
काल से परे हैं जो शक्तियाँ,
महाकाल, महाकाली,
काल भैरव को समर्पित ,
काल का सेवक,
उन्ही से होकर उन्ही की भक्ति के मद मे चूर हूँ ।
मैं अघोर हूँ......!!!!!
मैं अघोर हूं.......!!!!!
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan #sanatandharm #ayuspiritual

Thursday, January 17, 2019

महाभारत

"महाभारत"

गणराज की लेखनी मे छुपा,
वेदव्यास की आत्मा मे निहित,
कृष्ण की गीता का सार हैं।

भरत कुल की गौरव गाथा मे,
कुरु पुत्र शान्तनु से उत्पन्न ,
गंगा नन्दन भीष्म की अखंड प्रतिज्ञा का बखान हैं।

सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य और चित्रांगद की,
असमय मृत्यु पर्यंत।
अम्बिका और अम्बालिका के भरत कुल की रक्षा के लिये,
वेदव्यास को किये गये स्वयं के समर्पण का अद्भूत बखान हैं।

अम्बिका से धृतराष्ट्र और अम्बालिका से उत्पन्न पाण्डु कुल की,
आपसी रंजिशो मे धर्म और अधर्म का,
विचित्र युद्ध परिणाम हैं।

धृतराष्ट्र के गांधारी द्वारा उत्पन्न सौ पुत्रों का,
पाण्डु का कुन्ती को मिले वरदान और कुन्ती के माद्री को दिये ज्ञान से
उत्पन्न पांच पाण्डवो की,
वीरता और पराक्रम का बखान हैं।

द्रोणाचार्य की हैं शिक्षा,
एकलव्य की गुरु दक्षिणा का मान,
सुर्य पुत्र कर्ण को मिली सबसे उत्तम मुक्ति का सम्मान हैं।

युधिष्टर का हैं धर्म,
भीम का पराक्रम,
अर्जुन की धनुर्विद्या,
नकुल और सहदेव की मातृ भक्ति का बखान हैं।

द्रौपदी का हैं प्रतिशोध,
कुन्ती की विवशता,
शिखंडी को मिला वरदान हैं।

अभिमन्यु का हैं शौर्य,
घटोत्कच का अद्भूत बल,
बर्बरीक को मिला ईश्वर के तुल्य पूजित होने का आशीर्वाद हैं।

शकुनि का हैं कपट,
विदुर की नीति का बखान,
अश्वत्थामा को मिला श्राप हैं।

बब्रुवाहन का हैं बलिदान ,
विश्व के सबसे बड़े युद्ध का बखान,
छल, बल, नीतियों का अद्भूत अक्षौहिणी संज्ञान हैं।

कुरुक्षेत्र की भुमि पर,
सम्पुर्ण विश्व के योद्धाओं को एक साथ मिला,
मुक्ति का अद्भूत गौरव गान हैं।

युद्ध के अंत में जीवित बचें कृतवर्मा, कृपाचार्य तथा अश्वत्थामा तीन कौरवपक्षिय,
और पाँच पाण्डव, सात्यकि तथा श्रीकृष्ण ये सात पाण्डवपक्षिय द्वारा उद्घोषित पंचम वेद महान हैं।

युद्ध हो चाहे धर्म की अधर्म पर विजय के लिये,
या हो खुद की श्रेष्ठता साबित करने के लिये।
बिना छल और नीतियों के विजय सम्भव होती नही,
हर युद्ध मांगता सिर्फ त्याग और बलिदान हैं।
बस यही हैं कथा महाभारत की,
जिसके अन्त मे निहित
नव भारत का उदय काल हैं।🙏


आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan #ayuspiritual
#sanatandharm

रामायण

"रामायण"

महादेव के ईष्ट की हैं गाथा।
राम की मर्यादा।
लक्ष्मण का आत्म संयम हैं।

भरत की हैं प्रतिज्ञा।
शत्रुघ्न का पराक्रम।
दसरथ का पुत्र मोह हैं।

कौशल्या की हैं शिक्षा।
सुमित्रा का बलिदान।
कैकयी की छोटी सोच का अन्जाम हैं।

सीता की हैं अग्नि परिक्षा।
उर्मिला का पति व्रत धर्म।
मांडवी का प्रेम। 
श्रुतकीर्ती का अभिवादन हैं।

विश्वामित्र की हैं शिक्षा।
वशिष्ट का आशीर्वाद।
वाल्मिकी की तपस्या हैं।

निशादराज की हैं मित्रता।
केवट का कुल कल्याण। 
अहिल्या का मुक्ति मार्ग हैं।

शबरी की भक्ति की हैं शक्ति।
सुग्रीव का वचन महान।
विभिषण के राजद्रोह का नाम हैं।

हनुमान की हैं निश्छल भक्ति।
अंगद का पराक्रम।
जटायु,जाम्वंत,नल और नील का सेवा धर्म महान हैं।

इन्द्रजीत का हैं विजय गान।
ताडका,सुर्पणखा का उद्धार।
अहिरावण, खर और दुषण का मुक्ति मार्ग हैं।

कुम्भकरण का हैं अद्भूत बल।
अक्षय कुमार विद्रोह।
सुलोचना की पवित्रता का बखान हैं।

मंदोदरी की हैं समझाईश।
बाली का अथाह बल।
रावण के अहं का परिणाम हैं।

रामेश्वरम की हैं स्थापना।
सेतू का निर्माण।
राक्षसों को मिला मोक्ष का वरदान हैं।

ज्ञान अहं को बड़ावा देता,
कोई किसी से बड़ा ना होता।
अति का अन्त सुनिश्चित ही है,
मोह बिछोह का कारण होता।
अहं, दंभ , पाखण्ड से मुक्त जो,
स्त्री, गुरु, मात-पिता, परिवार,अपने कर्म अपने धर्म,
का पालन जो करता , वही पुरुषोत्तम की उपाधि से विभूषित होता।
बस यही, यह कथा हमको सिखाती हैं।
राम की मर्यादा की कहानी,
रावण की अहं गाथा बताती हैं।🙏🙏🙏

आयुष पंचोली 
©ayush_tanharaahi

#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan #ayuspiritual

Monday, January 14, 2019

सम्राट विक्रमादित्य

महान आर्यावर्त के, एक महान शासक का नाम आज किस्से कहानियों तक ही सिमित रह गया,
कहीं बेताल-पच्चिसी के नाम मे, कहीं एक महान सम्राट सिंहासन बत्तिसी की कहानियों मे ही कही खो गया।

नाम से ही जिनके सुर्य सा तेज और पराक्रम झलकता था,
था एक ऐसा भी सम्राट कोई जिसके आगे पुरा संसार ही नतमस्तक था।

महिलाओं को जिसने पुर्ण सम्मान का अधिकार दिया था,
उज्जैनी के सम्राट महांकाल के भक्त ने अवंतिका को संसार की एक मात्र राजधानी का दर्जा प्रदान किया था।

वह सम्राट जिसने काल भैरव को ब्रह्म हत्या के श्राप से मुक्ति दिलाई थी,
वह सम्राट जिसने ग्रहो मे सुर्य को श्रेष्टता की उपाधि दिलाई थी।

जिसके बनाये नियमों को आज भी संसार पूजता हैं,
एक हमारा ही देश हैं, जो अपनो की वास्तविकता को भुला, दूसरो की नंगाई का गुणगान करता हैं।

वह सम्राट जिनके दरबार से कभी कोई व्यक्ति बिना इंसाफ पाये नही लौटा था,
वह सम्राट जिनके बनाये संवत्सर से ही आर्यावर्त का नया साल प्रारम्भ होता हैं।

विक्रम संवत् को सब जानते हैं,
पंचांग की शुरुवात ही विक्रमादित्य के काल से मानते हैं।

सम्राट विक्रमादित्य ने अपने शासन काल मे हजारो मन्दिरों का निर्माण कराया था,
यहीं थे वह सम्राट जिनके शासन काल मे आधुनिक नीतियो का अस्तित्व सबके समक्ष आया था।

कौई ऐसी उपलब्धी नही थी जो सम्राट विक्रमादित्य ने हांसिल ना की हो,
कौन रहा ऐसा शासक जिसने उनकी नीतियों को अपने राज्य की व्यवस्था मे शामिल ना की हो।

सम्राट विक्रमादित्य का दरबार महकता था नौ रत्नो से,
धन्वन्तरि, क्षपनक, अमरसिंह, शंकु, खटकरपारा, कालिदास, वेतालभट्ट (या (बेतालभट्ट), वररुचि, वराहमिहिर जिनके नाम थे।

आयुर्वेद, युद्ध कला, राज व्यवस्था, जनकार्य, विद्यादान, काव्य, पूजन-पाठ,
व्यवस्थापक और ज्योतिष का ज्ञान राजा को देना जिनके कार्य थे।

राम राज्य भी था, कृष्ण सा अकन्टक राज भी था,
सम्राट विक्रमादित्य का काल आर्यावर्त का स्वर्णिम काल ही था।

पर राजनीति ने ऐसे महान शासक का नाम इतिहास से ही मिटा दिया,
जिसने भारत को विश्वगुरु बनाया था, उसको सिर्फ कहानियों मे ही छुपा दिया।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan #ayuspiritual

Tuesday, January 8, 2019

बर्बरीक

अधर्म पर धर्म की विजय की गाथा है महाभारत,
छल और युति ही युद्ध का निर्णय करते हैं उसका प्रमाण हैं महाभारत।

कई योद्धाओं का पराक्रम का आधार हैं महाभारत,
कितने ही वीरों का बलिदान हैं महाभारत।

ऐसा ही एक योद्धा था, जो इस युद्ध मे भाग ले ना पाया,
कृष्ण की युति को वो समझ ना पाया।

भीम पुत्र घटोत्कच और नाग कन्या अहिलावती का वो पुत्र था,
गर्भ से ही जो अनोखी सिद्धियों से युक्त था।

जन्म हुआ जब उसका तो पाण्डव कुल गौरवान्वित था,
ऐसा ही महान योद्धा बर्बरीक था।

माता से पाई थी शिक्षा जिसने निर्बल का हर पल साथ देने की,
थी क्षमता जिसमे मात्र अपने तीन बाणो से समस्त ब्रह्माण्ड को जितने की।

जब कृष्ण ने जाना यह तथ्य, विचार आया उन्हे कौरव कमजोर पडने लगे तो,
बर्बरीक साथ उनका देगा,
इस वीर के आगे तो महाभारत का निर्णय ही कुछ और होगा।

बनाकर भेष ब्रह्माण का कृष्ण मिलने उससे आये,
उसे अपने छल मे लेकर युद्ध मे भाग लेने के कुछ नीयम अलग बताये।

बोले वो ब्रह्माण भेष धारी भगवन युद्ध मे भाग लेने वाले हर शख्स को पहले अपना शीश रणचंडी को भेंट करना पड़ता हैं,
उसी के पश्चात मौका उसे युद्ध मे भाग लेने का मिलता हैं।

सुनकर बात कृष्ण की उस वीर ने पल भर मे शीश अपना उन्हे भेंट कर दिया,
देखकर उसका यह प्रताप श्री कृष्ण का शीश भी सम्मान मे उसके झुक गया।

तब कृष्ण अपने वास्तविक रूप मे उसके सामने आये,
बोले बर्बरीक मांगो क्या चाहते हो तुम्हारे प्रताप के आगे तो हम भी नतमस्तक हो जाये।

बर्बरीक बोला हे भगवन मैं युद्ध का समस्त दर्शन अपनी आंखो से करना चाहता हूँ,
कोई दुजी ख्वाईश नही मेरी फिर बस मुक्ति चाहता हूँ।

कृष्ण शीश उठा उस वीर का उँचे पर्वत पर रख आये,
जहाँ से युद्ध के दर्शन वीर को सुलभ हो जायें।

युद्ध हुआ समाप्त जब , और पाण्डव आपस मे अपनी वीरता के बखान करते थे,
सब युद्ध की विजय को अपने नाम करते थे।
जब युद्ध की विजय का कारण जानने सब कृष्ण के समक्ष आये।
कृष्ण बोले महान बर्बरीक ने युद्ध का सारा हाल देखा हैं,
क्यो ना सब मिलकर उनके समक्ष जायें।

जब सब मिलकर बर्बरीक के शीश के समक्ष खड़े थे,
सबके मन मे सिर्फ अपनी वीरता की महानता का वर्णन सुनने के भाव उमडे थे।

जब सबने पुछा हे वीर , कौन हैं जिसकी वीरता ने युद्ध हमे जिताया,
कौन वीर हैं वह जिसने युद्ध मे अपना उत्कृष्ट शौर्य दिखाया।

बर्बरीक बोले हे वीरों कोई नही था युद्ध मे बस सुदर्शन चल रहा था,
शीश काट वीरों के वह अपना कर्म सफल कर रहा था।

सुदर्शन से कटे शीश सब , रक्त का पान चंडी करती थी,
मेरी नजर मे युद्ध नही बस कृष्ण की नीति और युक्ति ही काम करती थी।

जब सबने इस तथ्य को जाना, नजर झुका सब बोले,
हे वीर नमन हैं तुमको तुमने अहं के समस्त विकार हमसे छिने।

कृष्ण ने वरदान दिया उस वीर को , तुम कृष्ण के रूप मे ही युगो युगो तक पूजे जाओगे,
अब से तुम हे वीर "खाटू-श्याम" कहलाओगे।

सोचो कितना महान ,कितना धैर्यवान, कितना बलशाली था वो योद्धा,
जिसे कृष्ण ने अपने रूप मे पूजित होने का मान दिया था।

आज जिसे जग "खाटू-श्याम" के रूप मे पूजता हैं सारा,
कहते हैं सभी हर पल,
"हारे का सहारा, बाबा श्याम हमारा "🙏🙏🙏🙏

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

#kuchaisehi #ayushpancholi #ayuspiritual #hindimerijaan #barbrik