ऐसा कोई भी कार्य जो सिर्फ पेट भरने और परिवार पालने के लिये होता उसे "कर्म" नही कहते, वह सिर्फ रोजगार कहलाता हैं। "कर्म" की श्रेणी मे वही कार्य आता हैं, जिससे जीव, मानव व प्रकृति की किसी भी रूप मे सेवा हो सकें। और यही "धर्म" अनुसार "कर्म" की व्याख्या हैं। जो सिर्फ जीव, मानव और प्रकृति की सेवा को ही कर्म की संज्ञा देती हैं।
जैसे कोई व्यक्ति अगर हवन, पूजन, ध्यान लगाकर जीव, मानव और प्रकृति की सेवा कर रहा हैं, बिना किसी को कुछ नुकसान पहुचायें और सात्विक जीवन यापन करते हुएँ तो वह कर्म ब्राह्मण कर्म कहलायेगा।
ठीक इसी प्रकार अगर कोई व्यक्ति जीव और मानव रक्षा व प्रकृति की सुरक्षा मे अपना सर्वस्व बलिदान करके भी अगर किसी को उन्हे कोई नुकसान नही पहूचाने देता, यह क्षत्रिय कर्म कहलाता हैं।
ऐसे ही प्रकृति से प्राप्त तत्वो, रसायनो, औषधियों और विभिन्न वस्तुओं को जीव व मानव कल्याण मे लगाकर सदैव प्रकृति से उन्हे व उन्हे प्रकृति से जोड़कर रखना वैश्य कर्म कहलाता हैं।
और जीव, मानव और प्रकृति की सेवा किसी भी रूप मे करना ताकी हम उस परं शक्ती का अनुभव कही और ना करते हुएँ प्राणी मात्र व प्रकृति के सानिध्य मे कर सकें शूद्र कर्म कहलाता हैं।
यहां कोई कर्म ना ही किसी से बड़ा हैं, नही कोई कर्म किसी से छोटा। मगर फ़िर भी क्यो हम जात-पात मे बट कर अपनो से ही घृणा करते हैं समझ नही आता। क्योकी एक सत्य तो यह भी हैं की हर मन्वंतर मे 7 ही सप्तर्षि होते हैं। और उन्ही से जन्म का चक्र आरम्भ होता हैं। अगर आपके अनुरूप वह सभी ब्राह्मण हैं। तो फिर देखा जाये तो हर कोई उन्ही की सन्तान हुआ, तो सभी ब्राह्मण हो गयें। क्योकी गौत्र तो सात ही हैं। उनके प्रवर अलग अलग हो सकते हैं।
और शायद सच कहूँ तो सनातन धर्म ने कभी जन्म के अनुसार वर्ण नही बनाये थे, उसमे सब कुछ कर्म अनुसार ही था। जिसे हमारे सामने किसी और रूप मे ही प्रदर्शित किया गया। क्योकी अगर वर्णो के अनुसार भेद-भाव होता तो, इस भारतवर्ष मे सदियों से कुंभ, सिंहस्थ व अनेको ऐसे आयोजन होते आये हैं, जहां सभी एक साथ बैठ कर भोजन भी करते हैं, और एक ही साथ लाखो की संख्या मे स्नान भी। तब क्या यह किसी ने नही सोचा होगा।
हमको जातो मे विभाजन कर हमपर राज करना मुगलो और अंग्रेजो की नीति थी, जिसे राजनेताओ ने भी आगे जारी रखा। और हम ठहरे कान के कच्चे की अपने ही शास्त्रो के गुढ़ रहस्यों को भूला और झूठला कर किसी और की ही बीन पर नागिन डांस करने लगे। और अपने अंदर इतना जहर समाहित कर लिया की, उससे अपनो को ही डसने लगे। अब ही वक्त हैं, अपने अस्तित्व को समझ एक हो जाओ। वरना इतिहास हो जाओगे, जिसे आने वाली हर पीढ़ी सिर्फ उस रूप मे देखेगी और समझेगी जो उन्हे इतिहासकार और चलचित्र वाले जिस रूप मे समझा देंगे। 🙏
©आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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