Saturday, September 19, 2020

कर्म क्या हैं....?

ऐसा कोई भी कार्य जो सिर्फ पेट भरने और परिवार पालने के लिये होता उसे "कर्म" नही कहते, वह सिर्फ रोजगार कहलाता हैं। "कर्म" की श्रेणी मे वही कार्य आता हैं, जिससे जीव, मानव व प्रकृति की किसी भी रूप मे सेवा हो सकें। और यही "धर्म" अनुसार "कर्म" की व्याख्या हैं। जो सिर्फ जीव, मानव और प्रकृति की सेवा को ही कर्म की संज्ञा देती हैं।

जैसे कोई व्यक्ति अगर हवन, पूजन, ध्यान लगाकर जीव, मानव और प्रकृति की सेवा कर रहा हैं, बिना किसी को कुछ नुकसान पहुचायें और सात्विक जीवन यापन करते हुएँ तो वह कर्म ब्राह्मण कर्म कहलायेगा।

ठीक इसी प्रकार अगर कोई व्यक्ति जीव और मानव रक्षा व प्रकृति की सुरक्षा मे अपना सर्वस्व बलिदान करके भी अगर किसी को उन्हे कोई नुकसान नही पहूचाने देता, यह क्षत्रिय कर्म कहलाता हैं।

ऐसे ही प्रकृति से प्राप्त तत्वो, रसायनो, औषधियों और विभिन्न वस्तुओं को जीव व मानव कल्याण मे लगाकर सदैव प्रकृति से उन्हे व उन्हे प्रकृति से जोड़कर रखना वैश्य कर्म कहलाता हैं।

और जीव, मानव और प्रकृति की सेवा किसी भी रूप मे करना ताकी हम उस परं शक्ती का अनुभव कही और ना करते हुएँ प्राणी मात्र व प्रकृति के सानिध्य मे कर सकें शूद्र कर्म कहलाता हैं।

यहां कोई कर्म ना ही किसी से बड़ा हैं, नही कोई कर्म किसी से छोटा। मगर फ़िर भी क्यो हम जात-पात मे बट कर अपनो से ही घृणा करते हैं समझ नही आता। क्योकी एक सत्य तो यह भी हैं की हर मन्वंतर मे 7 ही सप्तर्षि होते हैं। और उन्ही से जन्म का चक्र आरम्भ होता हैं। अगर आपके अनुरूप वह सभी ब्राह्मण हैं। तो फिर देखा जाये तो हर कोई उन्ही की सन्तान हुआ, तो सभी ब्राह्मण हो गयें। क्योकी गौत्र तो सात ही हैं। उनके प्रवर अलग अलग हो सकते हैं।

और शायद सच कहूँ तो सनातन धर्म ने कभी जन्म के अनुसार वर्ण नही बनाये थे, उसमे सब कुछ कर्म अनुसार ही था। जिसे हमारे सामने किसी और रूप मे ही प्रदर्शित किया गया। क्योकी अगर वर्णो के अनुसार भेद-भाव होता तो, इस भारतवर्ष मे सदियों से कुंभ, सिंहस्थ व अनेको ऐसे आयोजन होते आये हैं, जहां सभी एक साथ बैठ कर भोजन भी करते हैं, और एक ही साथ लाखो की संख्या मे स्नान भी। तब क्या यह किसी ने नही सोचा होगा।
हमको जातो मे विभाजन कर हमपर राज करना मुगलो और अंग्रेजो की नीति थी, जिसे राजनेताओ ने भी आगे जारी रखा। और हम ठहरे कान के कच्चे की अपने ही शास्त्रो के गुढ़ रहस्यों को भूला और झूठला कर किसी और की ही बीन पर नागिन डांस करने लगे। और अपने अंदर इतना जहर समाहित कर लिया की, उससे अपनो को ही डसने लगे। अब ही वक्त हैं, अपने अस्तित्व को समझ एक हो जाओ। वरना इतिहास हो जाओगे, जिसे आने वाली हर पीढ़ी सिर्फ उस रूप मे देखेगी और समझेगी जो उन्हे इतिहासकार और चलचित्र वाले जिस रूप मे समझा देंगे। 🙏

©आयुष पंचोली 
©ayush_tanharaahi

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Wednesday, August 5, 2020

"राम" सिर्फ नाम नही, मानव जीवन के मूल्यों की पराकाष्ठा हैं।

रुपहले परदे पर नंगाई का नाच करने वाले हैं, 
आदर्श जिस युवा पीढ़ी के।
उनके रास्ट्र मे राम का आना एक मजाक सा लगता हैं।
वो गुजरते हैं दिन जिनके शराब के प्यालो, सीगरेट के छल्लो और नारियों के जिस्म की माप नापने मे,
उनका राम को पूजना एक छल सा लगता हैं।

अच्छी बात हैं, "श्रीराम" का वनवास खत्म हो ,
उन्हे उनका घर, उनका स्थान मिलने जा रहा हैं।
कारसेवको को उनके बलिदान का फल मिलने जा रहा हैं।
पवित्र आर्यावर्त के भारत भूमि के खण्ड पर एक नया इतिहास बनने जा रहा हैं।
पर मेरी नजरो मे तो सिर्फ यह व्यापार का जरिया बनकर,
मर्यादा की मुर्ति, आदर्शो के मूल स्थम्ब, एक सर्वश्रेष्ठ चारित्र का अपमान होने जा रहा हैं।

वह देश जहाँ रोज बलात्कार होते हैं,
जहां रिश्वत के आगे गरीब लाचार होते हैं।
जहां जिस्म का कारोबार सरे आम होता हैं।
जहां नंगाई आधुनिकता का उदाहरण बन गई हैं,
जहां की मूल संस्क्रति ही कही विलुप्त हो गई हैं।
वहां पर "श्री राम" क्या कभी आ पायेंगे,
क्या लगता हैं इस देश के युवा उनका एक भी गुण अपना पायेंगे।

फिर क्यो यह दिखावा करते हो,
मन मे पलता हैं पाप सभी के,
और "श्री राम" के अस्तित्व को अपनाने का ढोंग करते हो।
मर्यादा की सर्वश्रेष्ठ मुर्ति को तुमने राजनीती के खेल का मोहरा बना दिया,
अरे शर्म करो भारतवासियों अपनाना चाहिये था जिसके चरित्र को, जिसके आदर्श जीवन के मूल्यो को, बनाना था जिसको आदर्श तुम्हारा, तुमने उन्ही को वाहवाही पाने का जरिया बना लिया।

मन्दिर बन जायेगा "श्री राम" का, मगर राम के चरित्र को जब तक कोई अपना ना पायेगा, क्या लगता हैं किसी को तब तक राम राज्य आ भी पायेगा।
राम एक नाम नही, एक चरित्र की व्याख्या हैं,
मानव जीवन के मूल्यो की वो परकाष्टा हैं।

जब तक चरित्र को राम के, जब तक अस्तीत्व के मूल्यों को राम के,
जब तक भारत का हर एक इन्सान अपने अस्तीत्व मे ला ना पायेगा, तब तक राम का मन्दिर सिर्फ पत्थर का एक भवन कहलायेगा।

राम को समझना हैं तो राम को अपनाना पड़ेगा,
मात्र राम के नाम पर जयकारा लगाने से राम का कोई भक्त नही कहलायेग।

जीवन मे जब राम का कोई एक भी गुण भारत का हर वासी अपने अस्तित्व मे ला पायेगा उस दिन ही यह मन्दिर मे विराजित वह सर्वश्रेष्ठ मर्यादा के पालक, पुरुषोत्तम को अपने वनवास से सही मायनो मे छुटकारा मिल पायेगा।

राम की महत्ता का , राम के जीवन के मूल्यों का,
राम के चरित्र का, राम के "श्री राम" बनने के सफर का,
"श्री राम" की मर्यादा की सीमाओ का,
उनके धर्म के पालन का, उनके पुरुषोत्तम कहलाने के कारण का,
मूल आजतक कोई समझ नही पाया,
कोई कभी राम को पुर्ण रूप से चरित्र मे ढाल ना पाया,
कोई राम को कभी लिख ना पाया।

पर आज राम का मन्दिर बनने की घड़ी आ गई हैं,
एक विशाल व्यक्तित्व को महज कुछ एकड की जमीन पर विराजने की तैयारियां हो गई हैं। 

राम कृपा करे राम का आगमन आर्यावर्त की भारत भुमी के इस खण्ड पर हो जायें,
राम राज्य आये या ना आये मगर यहां के हर व्यक्ति के अस्तित्व मे राम के चरित्र का कुछ अंश तो आयें।
सवाल उठाने वाले कुछ लोग राम पर, राम की महत्ता को शायद समझ पायें,
राम एक जीवन की पुर्ण परिभाषा हैं, इसे काश हर कोई जान पायें।
शायद तब जाकर ही राम का वनवास हो खत्म, राम मन्दिर का निर्माण अपने उद्देश्य की पुर्ती को पा पायें।
अगर नही होता ऐसा तो सिर्फ यह राजनीती का खेल बनकर रह जायेगा,
राम का अस्तित्व, मर्यादा, चरित्र सिर्फ मजाक बनकर रह जायेगा, और यकीन मानियें, यह वनवास से भी ज्यादा बडा वनवास हो जायेगा।

सभी राम भक्तो को राम मन्दिर की नीव के प्रथम चरण की शुरुवात की बहुत बहुत बधाई । सभी कारसेवको को उनके बलिदान पर नमन। आशा हैं, राम मन्दिर के निर्माण के साथ ही हम सब अप्ने व अपनी आने वाली पीढियों मे राम के आदर्श व्यक्तित्व के गुण और चरित्र को ढाल सकने मे सक्षम हो पायें, तभी राम के "श्री राम" बनने की सार्थकता को उनका उद्देश्य मिल पायेगा। तभी राम का वनवास सही मायनो मे खत्म हो पायेगा।
"जय श्री राम"

राम, रामेती रामेती, रमे रामे मनोरमे,
सहस्त्र नाम ततुल्यं राम नाम वरानने।🙏 

©आयुष पंचोली 
©ayush_tanharaahi

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Friday, January 24, 2020

यात्रा खुद को पाने की

निकला था मैं भी मांगने को उस खुदा से तमाम ऐशो-आराम जिन्दगी के,
मगर जब मिला , तो छोड के सारे ऐशो-आराम जीवन के हर क्षण मे हर पल साथ उन्ही का माँग आया।

मोह छूट गया संसार से उसी क्षण,
जब सामने मेरे उभर कर प्रतिबिंब से उस मुरत की,
जलती हुई ज्योत सा पवित्र एक रूप उभर आया।

मैं असमंजस मे उस पल मे सांसारिक सबकुछ  झुठला बैठा ,
जब उस शक्ती के एहसास को जाना बस तबसे उसका हो बैठा।

मोह-माया की भाषा का वहां कोई तौल नही होता,
मन के भाव से बढ़कर वहां पर कोई और मौल नही होता।

सब कुछ भूल जाओगे जब उस मूल से ऊपर आओगे,
दुनिया के इस मायावी प्रपंच से मुक्त ही होना चाहोगे।

जब एहसास हो जायेगा झुठ हैं सबकुछ जो देखा , सुना और जाना हैं,
एक सत्य इस मिथ्या जीवन के मायावी संसार का बस अपने आप को पाना हैं।

पहले यात्रा खुद को पाने की , फ़िर असीम कल्पनाओ का विस्तृत यह ब्रह्मांड हैं,
एक खण्ड मे कही किसी चीटी सा हम रहते हैं, ऐसे ही 84 ब्रह्मांडो का सोच से भी परे एक विस्तृत यह वैदिक सार हैं।

मगर यात्रा सबसे पहले खुद को पाने की करनी होगी,
जब पा लिया खुद को तो, फ़िर हर यात्रा बहुत छोटी होगी।

शायद योगियों के जीवन का यही विस्तृत सार हैं,
कुछ भी नही हैं हम उसके आगे, जिसने रचा यह सारा मायाजाल हैं।🙏

©आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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https://sanatandharmbyayush.wordpress.com/2020/01/24/%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%be-%e0%a4%96%e0%a5%81%e0%a4%a6-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a5%80/