Friday, January 24, 2020

यात्रा खुद को पाने की

निकला था मैं भी मांगने को उस खुदा से तमाम ऐशो-आराम जिन्दगी के,
मगर जब मिला , तो छोड के सारे ऐशो-आराम जीवन के हर क्षण मे हर पल साथ उन्ही का माँग आया।

मोह छूट गया संसार से उसी क्षण,
जब सामने मेरे उभर कर प्रतिबिंब से उस मुरत की,
जलती हुई ज्योत सा पवित्र एक रूप उभर आया।

मैं असमंजस मे उस पल मे सांसारिक सबकुछ  झुठला बैठा ,
जब उस शक्ती के एहसास को जाना बस तबसे उसका हो बैठा।

मोह-माया की भाषा का वहां कोई तौल नही होता,
मन के भाव से बढ़कर वहां पर कोई और मौल नही होता।

सब कुछ भूल जाओगे जब उस मूल से ऊपर आओगे,
दुनिया के इस मायावी प्रपंच से मुक्त ही होना चाहोगे।

जब एहसास हो जायेगा झुठ हैं सबकुछ जो देखा , सुना और जाना हैं,
एक सत्य इस मिथ्या जीवन के मायावी संसार का बस अपने आप को पाना हैं।

पहले यात्रा खुद को पाने की , फ़िर असीम कल्पनाओ का विस्तृत यह ब्रह्मांड हैं,
एक खण्ड मे कही किसी चीटी सा हम रहते हैं, ऐसे ही 84 ब्रह्मांडो का सोच से भी परे एक विस्तृत यह वैदिक सार हैं।

मगर यात्रा सबसे पहले खुद को पाने की करनी होगी,
जब पा लिया खुद को तो, फ़िर हर यात्रा बहुत छोटी होगी।

शायद योगियों के जीवन का यही विस्तृत सार हैं,
कुछ भी नही हैं हम उसके आगे, जिसने रचा यह सारा मायाजाल हैं।🙏

©आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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https://sanatandharmbyayush.wordpress.com/2020/01/24/%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%be-%e0%a4%96%e0%a5%81%e0%a4%a6-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a5%80/